Book Title: Dashvaikalaik Sutra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 89
________________ अलं पासाय- खंभाणं, फलिहग्गल - नावाणं, पीए चंगबेरे अ, जंतलट्ठी व नाभी वा, आसणं सवणं जाणं, भूओवघाइणिं भासं तोरणार्ण अलं गिहाण अ उदग - दोणिणं ॥ २७ ॥ सिआ । सिआ ॥ २८ ॥ नंगले मइयं गंडिआ व अलं हुज्जा वा नेवं भासिज्ज किंचुवस्सए । पन्नवं ॥ २९ ॥ उद्यान में, पर्वत पर, वन में, प्रयोजनवश जाने पर प्रज्ञावान मुनि बड़े वृक्षों को देखकर ऐसा न कहें कि ये वृक्ष प्रासाद बनाने में, स्तंभ में, नगरद्वार में, घर बनाने में, परिघ में (नगर द्वार की आगल) अर्गला (गृहद्वार की आगल) नौका बनाने में, उदक द्रोणी (रैंट को जल को धारण करने वाली काष्ठ . की बनावट) आदि बनाने लायक है। इसी प्रकार ये वृक्ष, पीठ के लिए (पटिये के लिए) काष्ठ पात्र के लिए, हल के लिए, मयिक बोये हुए खेत को सम करने हेतु उपयोग में आनेवाला कृषि का एक उपकरण, कोल्हू यंत्र की लकड़ी (नाडी) नाभि पहिये का मध्य भाग, अहरन के लिए समर्थ है। इन वृक्षों में कुर्सी, खाट, पलंग, रथ आदि यान, या उपाश्रय उपयोगी काष्ठ है। इस प्रकार पूर्वोक्त सभी प्रकार की भाषा वनस्पति काय की एवं उसके आश्रय में रहने वाले अनेक प्राणियों की. घातक होने से प्रज्ञावान् मुनि ऐसी भाषा न बोले । २६ से २९ । गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि अ। तहेव वणाणि रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पन्नर्व ॥ ३० ॥ जाइमता इमे रुक्खा, दिहवडा पावसाला विडिया वए दरिसणि ति सहा करलाई पक्काई, पायखज्जाई वेलाइयाई टालाई, वेहिमाई ति नो० अ संखडा इमे अंबा, बहु वइज्ज बहु संभूआ, भूअरुव ति वा निव्वडिमा महालया । अ॥ ३१ ॥ नोवर । वए ॥ ३२ ॥ श्री दशवेकालिक सूत्रम् / ८६ कला । पुणो ॥ ३३ ॥ उद्यान, पर्वत, और वन में या वन की ओर जाते हुए बड़े वृक्षों को देखकर प्रयोजनवश बुद्धिमान् साधु इस प्रकार बोले कि ये वृक्ष उत्तम जातिवंत है, दीर्घ, गोल, अतीव विस्तार युक्त है, विशेष शाखाओं से युक्त है, प्रशाखायुक्त, है, दर्शनीय है । ३०, ३१/ आम्र आदि के फल पक गये हैं, पकाकर खाने योग्य है ऐसा न कहे। ये फल परिपूर्ण पक गये हैं उन्हें उतार लेने चाहिये, ये कोमल है, या ये दो भाग करने लायक है ऐसा न कहें। ३२ । प्रयोजनवश कहना पड़े तो ये आमवृक्ष फल धारण करने में अब असमर्थ है, । गुडली युक्त अधिक फल वाले हैं,। एक साथ उत्पन्न हुए अधिक फलवाले हैं। इस प्रकार निर्दोष भाषा का मुनि प्रयोग करें । ३३ ।

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