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अष्टम आचार प्रणिधि अध्ययन उपयोगी शब्दार्थ आयारप्पणिहिं आचारनिधि, आचार में दृढ मानसिक संकल्प भे तुमको उदाहरिस्सामि कहुंगा।१। इइ इस प्रकार।२। अच्छण-जोअण जीवरक्षणयुक्त होअव्वं सिआ होना चाहिओ।३। लेलुं पत्थर का ढेला, भिंदे टुकड़े करे संलिहे घिसे सुसमाहिले निर्मल स्वभाव युक्त।४। सिलावुटुं ओले।५। उदउल्लं जलाद्र।६। अलायं अलात जलती लकड़ी, अच्चिं अग्नि से दूर हुई ज्वाला।८। सिणेह स्नेह-सूक्ष्म, पुष्फसुहुमं पुष्प-सूक्ष्म, पाणुत्तिंगं प्राणी-सूक्ष्म, उत्तिंग-सूक्ष्म कीटिका नगर।१५। धुवं नित्य।१७। सिंघाणजल्लिअं नाक, कान का मेल।१८। परागारं गृहस्थ के घर में।१९। अक्खाउ कहने के लिए अरिहइ योग्य है। २०। केण उवाअण कोइ भी उपाय से।२१। निट्ठाणं सर्व गुण से युक्त आहार रसनिजूढं नीरस आहार, भद्दगं अच्छा। २२। उंछं धनाढ्य के घर।२३। आसुरत्तं क्रोध के प्रति।२४। पेमं राग नाभिनिवेसओ न करे अहिआसओ सहन करे। २६। अत्थंगयंमि अस्त हो जाने पर आइच्चे सूर्य पुरत्था सुबह में अणुग्गओ उदय होने के पूर्व। २८। अतिंतिणे प्रलाप न करें, अचवले स्थिर उअरे दंते स्वयं के पेट को वश में रखनेवाले न खिंसओ निंदा न करे। २९। अत्ताणं स्वयं का समुक्कसे प्रशंसा।३०। कट्ट करके, आहम्मिअं अधार्मिक, संवरे आलोचना करे।३१। परक्कम सेवनकर, सुई पवित्र वियडभावे प्रकट भाव के धारक असंसत्ते अप्रतिबध्द। ३२। अमोघं सफल, उवव्वायजे आचरण में लेना। ३३। अणिग्गहिआ वश न किये हुए, अनिगृहीत, कसिणा संपूर्ण पुणब्भवस्स पूनर्जन्म। ४० । रायणिअसु रत्नाधिक पउंजे करे धुवसीलयं निश्चयशीयल को, कुम्मुव्व कूर्मसम अलीण पलीण गुत्तो आलीन-प्रलीन-गुप्त, अंगोपांगों को सम्यक् प्रकार से रखने वाला परक्कमिजा प्रवृत्त हो। ४१। मीहो एक दूसरे के साथ, सप्पहासं हंसी-मजाक के वचन । ४२। जुंजे जोड़े अनलसो आलसरहित। ४३। पारत्त परलोक, पुजुवासिजा सेवा करे अत्थविणिच्छयं अर्थ के निर्णय को। ४४। पणिहाय प्रणिधान एकाग्रचित्त।४५। किच्चाण आचार्य जो उनके उरं समासिज्ज जंघा पर जंघा चढाकर गुरूणंतिओ गुरू के पास। ४६। पिट्ठिमसं परोक्ष में निंदा। ४७। अहिअगामिणी अहित करनारी। ४८। पडिपुन्नं स्पष्ट उच्चार युक्त, प्रगट ऐसी, अयंपिरं न ऊँचे, अणुविगं अनुद्विम्म युक्त निसिर बोले अत्तवं चेतनायुक्त/चेतनावंत। ४९। अहिज्जग्गं · अध्ययन करने वाले वायविक्खलिअं वचन बोलते समय स्खलित होना, भूल जाना ।५०। भूआहिगरणं पयं प्राणीओं के लिए पीड़ा का स्थानक।५१। अन्नद्रं अन्य के हेतु, पगडं किया हुआ लयणं स्थान भइज्ज सेवे। ५२। विवित्ता दूसरे से रहित। ५३। कुक्कुड पोअस्स मुर्गे के बच्चे को, कुललओ बिल्ली से, विग्गहओ शरीर से। ५४। चित्त भित्तिं चित्रित निज्झाओ देखे सुअलंकिअं अच्छे अलंकार युक्त भक्खरं-पिव सूर्य को जैसे पडिसमाहरे खींच ले।५५। पडिछिन्नं कटे हुए। ५६। अत्तगवेसिस्स आत्मार्थी के तालउडं तालपूट । ५७। पच्वंगं प्रत्यंग चारुल्लविअ मनोहर आलाप पेहि दृष्टि को।५८। मप्पुत्रेसु मनोहरों में नाभिनिवेसन स्थापन करें अणिच्वं अनित्य। ५९। विणीअतण्हो तृष्णा को दूर करता हुआ सीईभूण्ण शीतल होकर।६०। निक्खंतो निकला है, अणुपालिज्जा पालन करे आयरिअसंमजे आचार्य को बहु संयत।६१। सेणाइ सेना से समत्तमाउहे तपस्या आदि आयुधयुक्त अहिडिओ करने वाला ऐसा साधु सूरे शूरवीर पुरुष के जैसा परेसिं दूसरे शत्रुओं को।६२। सज्झाण सद्ध्यान अपावभावस्स शुद्ध चित्तयुक्त समीरिअं अग्नि से तपा हुआ रुपमल्लं चांदी का मल जोइणा अग्नि से।६३। अममे ममता रहित, विरायइ शोभता है कम्मघणंमि कर्मरुप बादल अवगो दूर होने पर कसिणब्मपुडावगमे समग्र बादल दूर होने पर।६४।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ९१