Book Title: Dashvaikalaik Sutra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ एलगं दारगं साणं, वच्चगं वा वि कुट्ठए । उल्लंघिआ न पविसे, विउहित्ताणु व संज ए ॥ २२ ॥ - जिस घर के द्वार में पुष्प, बीजादि बिखरे हुए हो, धान्य के दाने हो, तुरंत का लीपन आदि किया हो तो उस घर में, एवं एलग, बालक, श्वान, बछड़ा आदि बैठा हुआ हो तो उसका उल्लंघन कर, उसको निकालकर या उसे उठाकर उस घर में प्रवेश न करें ।गोचरी आदि हेतु न जाएं । २१/२२ । वर्तमान युग में अधिकांश से लीपन के स्थान पर फर्श धोने की प्रथा विशेष है अत: फर्श पानी से भी हुई हो तो प्रवेश न करें। तुरंत पोता किया हुआ हो तो अंदर न जाएं। असंसत्तं पलोइज्जा, नाइदूरावलोअओ । उप्फुल्लं न विनिज्झाओ, निअट्टिज्ज अयंपिरो ॥ २३ ॥ अइभूमिं न गच्छेज्जा, गोअरग्ग-गओ मुणी । कुलस्स भूमिं जाणित्ता, मिअं भूमिं परक्कमे ॥ २४ ॥ तत्थेव पडिलेहिज्जा, भूमि. भागं विअक्खणो । सिणाणस्स य वच्चस्स संलोगं परिवज्जओ ॥ २५ ॥ गृहस्थ के घर में गोचरी वहोरते समय साधु को किस प्रकार रहना चाहिये उसका स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि स्त्री जाति पर आसक्ति भाव न लाकर स्वयं के कार्य का अवलोकन करना, घर में अति लम्बी नजर न करना, घर के लोगों को विकस्वर नजरों से न देखना, आहारादि न मिले तो दीन वचन नहीं बोलकर लौट जाना चाहिए ॥ २३ ॥ मुनि को उत्तम कुल की नियमित भूमि की मर्यादा को जानकर गृहस्थ की अनुमति लेकर उतनी ही भूमि तक जाना । आगे जाना नहीं चाहिये ॥ २४ ॥ मर्यादा युक्त भूमि तक गए हुए मुनि को भूमि का दृष्टि पडिलेहन के बाद खड़े रहते समय स्नानागार या बड़ीनीति का स्थान ( बाथरुम या लेट्रीन) देखने में आते हो तो उस स्थान से शीघ्र दूर हो जाय । स्व पर भाव प्राणों की सुरक्षा हेतु इन नियमों का पालन अतीव आवश्यक है ॥ २५ ॥ दग - मट्टिअ - आयाणे, बीयाणि हरिआणि अ। परिवज्जंतो चिट्ठिज्जा, सव्विंदिअ - समाहिओ ॥ २६ ॥ जल एवं मिट्टी लाने के मार्ग को एवं वनस्पति के स्थान को छोड़कर, सभी इंद्रियों को सम्भाव में रखकर खड़ा रहना चाहिये ॥ २६ ॥ 66 "कल्प्याकल्प्य विचार" तत्थ से चिट्ठमाणस्स, आहारे पाण- भोअणं । अकप्पिअं न गेण्हिज्जा, पडिगाहिज्ज आहरति सिअ तत्थ, परिसाडिज्ज दिंतिअं पडिआइक्खे न मे कप्पड़ संमदमाणी पाणाणि, बीआणि श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ५० कप्पिअं ॥ २७ ॥ भोयणं । तारिसं ॥ २८ ॥ हरिआणिअ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140