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किसी प्रकार पालन नहीं कर सकता।
-जो साधु विषयभोगों का त्याग नहीं करता, वह जगह-जगह दुःख देखता हुआ, और खोटे परिणामों के वश होता हुआ साधुवेश का किसी तरह पालन नहीं कर सकता। साधु कब कहा जाता है?
वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि या
अच्छंदा जे न मुंजंति, न से चाइ ति वुच्चड़॥२॥ शब्दार्थ-जे जो पुरुष अच्छंदा अपने आधीन नहीं ऐसे वत्थगंधं वस्त्र, गंध अलंकारं अलंकार इत्थीओ स्त्रियाँ य और सयणाणि शयन, आसन आदि को न नहीं भुंजंति सेवन करते से वे पुरुष चाइ त्ति त्यागी न नहीं वुच्चइ कहे जाते।
-जो चीनांशुक आदि वस्त्र, चन्दन कल्क आदि गन्ध, मुकुट कुंडल आदि अलंकार, स्त्रियाँ, पल्यंक आदि शयन और आसन न मिलने पर उनका परिभोग नहीं करते वे त्यागी नहीं कहे जाते।
जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्टिकव्वई।
साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥३॥ शब्दार्थ-जेय जो पुरुष कंते मनोहर पिए मन गमते लद्धे मिले हुए साहीणे स्वाधीन भोए विषय-भोगों से विपिढिकुव्वइ मुख फेर लेता है य और चयइ छोड़ देता है से वह हु निश्चय से चाइ त्ति त्यागी वुच्चइ कहा जाता है।
-विषय-भोगों को जो पुरुष छोड़ देता है, वही असली त्यागी कहा जाता है। यहाँ टीकाकार पूज्यपाद श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज फरमाते हैं कि
“अत्थपरिहीणो वि संजमे ठिओ तिणि लोगसाराणि अग्गी उदगं महिलाओ य परिच्चयंतो चाइ त्ति।"
धन वस्त्र आदि सामग्री से रहित चारित्रवान् पुरुष यदि लोक में सारभूत अग्नि, जल और स्त्री इन तीनों को सर्वथा छोड़ दे तो वह त्यागी कहा जाता है। क्योंकि -संसार में अपरिमित धनराशी मिलने पर भी अग्नि, जल और स्त्री का त्याग नहीं हो सकता; अतएव तीनों चीजों को छोड़नेवाला धनहीन पुरुष भी त्यागी ही है। सुख कैसे मिले?
आयावयाही चय सोगमलं, कामे कमाही कंमियं खु दुक्खं। छिंदाहि दोसं विणएज रागं, एव सुही होहिसि संपराए॥५॥
शब्दार्थ-आयावयाही आतापना ले सोगमलं सुकुमारपने को चय छोड़ कामे विषय वासना को कमाही उल्लंघन कर खु निश्चय से दुक्खं दुःख का कमियं नाश हुआ
श्री दशवैकालिक सूत्रम् | ८