Book Title: Dangvopakhyanam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वन्नदन // 18 // टीका-हृदयने विशे महा दुःख उत्पन्न थयंछे तोयपण केसरीसिंहना अ. 17 जेवू वदन करीने सभामध्ये ऋष्णना सेवक प्रति बोले छे. 18 डांगवउवाच॥ डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोकानदेयाकस्यतुरगीसत्येनमदग्रहे स्थिता // विनाजीवस्यमेक्रष्णतुरगीनागतागृहे // 19 // टीकारे चर सत्यवडे करीने में जे कोइ तुरगी राखेलीछे तेतो मारो प्राण गया विना कोइने आपनारो नथी, माटे जइने ऋष्णने केहे के डांगव जिवेछे त्यांसुधी तमारे घेर तुरगी नहीं अावे.१९ ॥श्लोक। गछगछप्रतिहारक्रष्णवाक्यंनिवेदय श्रुत्वातस्यवचोराजन्गतःक्रष्णस्य संनिधौ // 20 // टीका-हे प्रतिहार जा जा खोटी न था अने क्रष्णने जइने केहे एवं डांगवर्नु वचन सांभळीने हे जन्मेजय एअनुचर ऋष्णना सानिध्य जतोहवो. 20 ॥श्लोक॥ यथातथ्यंवदत्सभ्यान्क्रष्णादीन्सतुसेवकः तुष्णिमासमहाराजक्रष्णो हास्यंचकारह // 21 // टीका-तदनंतर, ते अनुचर तेतो दीनपणावडे करीने ऋष्पनी साथे जेवू डांगवे कडं तेज प्रमाणे केहे छे, अने ते अनुचरनां वाक्य सांनळीने ऋष्ण सना मध्ये हास्य करे छे. 21 ॥श्लोक॥शृणुराजन्प्रवक्ष्यामिडांगवेनतुयत्कृतं वीरसेनंमहामंत्रिवाक्यमाहविशां| पतिः // 22 // दीका-हवे वैशंपायन मुनि जन्मजयने केहे छे फे, दे राजन् जे डांगवे 17 For Private and Personal Use Only

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