Book Title: Dangvopakhyanam
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie दाग भयान्वितः // 36 // टीका-हे मात ततो दैवयोगे करीने टुं मारा घरने विशे लाग्यो / अ 28 छु, ते वात क्रष्ण जाणीने माहारी पासे मागे छे. 36 ॥श्लोक। आगतोशरणार्थायकेनापिनचरक्षित : अश्विन्यासहमेदेहंत्यक्तुमिछामि / / सांप्रतं॥३७॥ टीका-मने कोइशरण राखे एवो विचार करीने निकल्यो सतो, कोणेय शरण न राख्यो, ते पीडाये करीने अश्वनी सुद्धा बळि मरवू इच्छुछु. 37 सुभद्राउवाच॥ सुनद्रा शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक॥ तस्यवचनमाकर्ण्यसुभद्रा प्राहसत्वरं // मादुःखंकुरुनृपतेरक्षितस्त्वंमयाविभो // 38 // टीका-तेनां वचन सांभळीने सुभद्रा बोले छे, हे नृपति तुंदुःख मां धरच, में तने शरण राख्यो. 38 ॥श्लोक॥ क्रष्णस्यभगीनिचाशुसुनद्रानामनामतः॥ यदिजानातिमेधातायुद्धार्थ / नागमिष्यति // 39 // टीका-हुँ क्रष्णनी बेन सुनद्रार्छ, अने ऋष्ण जाणशे के, डांगवने माहारी बेने शरण राख्यो छे, एटले ताहारी साथे युद्ध करवा नहीं आवे, ए प्रकारे ताहारूं समाधान करीश. 39 श्लोक॥ कदाचायातिसमरस्वामिमरणमारभेत् // नकरोतिपतियुदंउपाय शृणु / नूपते // 40 // टीका-एम करतां जो युद्ध करवाने क्रष्ण चढशे, तो माहारा स्वामी एमनी साथे युद्ध करतां हठवाना नथी, अने जो माहारा स्वामी क्रष्ण साथे युद्धे 28 For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132