Book Title: Dangvopakhyanam
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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वरारोहमादुःखंकुरुसुटते॥ तंत्वयाशुभंकर्मक्षत्रीधर्मश्चरक्षित H // 9 // टीका-धन्य छे तमने हवे राख्यो तो शोक ना करशो कारण के सारुं करयुं छे, तमे क्ष- 7 त्रिनो धर्म साचवी जाण्यो. 9 ॥श्लोक। प्रसन्नाहंतदाजातातवसंगसदावह्ययं पश्वात्प्रोवाचवायुजोसुभद्रांप्रति भारत // 10 // टीका-पांचाळी कहे के ढुं पण ताहारी जोडे प्रसन्न थइछु, एटलामां नीमसेन सुनद्रा साथे बोली उठेछे. 10 ॥भीमसेनउवाच॥ हवे भीमसेन सुभद्राने शं केहेता हवा; ॥श्लोक। गच्छगेहे यथातथ्यंसुनद्ररक्षितोमथा। अहंमृतोमृतेराझिमादुःखंकुरुसुटते // 11 // टीका-हे | सुभद्रे जाजा घरनां काम करच ! एनुं हुं रक्षण करीश, एने में शर्ण राख्यो दुःख मां घरीश हुँ जीवीश त्यांसुधी एने दुःख नहीं पडवा देउ. 11 . ॥श्लोक। नीमस्यवचनंश्रुत्वासुभद्रास्वग्रहंगताहर्षितो डांगवोराजाभीमेनसह नंदति // 12 // टीका-ए प्रकारे नीमनां वचन सांनळीने सुभद्राजी पोताना घर प्रत्ये गति करे छे,अने ते डांगव राजा हर्षित हर्षित थइने नीमसेन साथे आनंद करेछे.१२ ॥श्लोक॥ प्रसन्नोनूतदाराजाश्रुत्वावा युधिष्ठिरः॥ क्रष्णेनयत्कृतंकर्मतद्राजन्क | थयामिते॥१३॥ टीका-नीमे डांगवने शर्ण राख्यो ए वात युधिष्टिर सांभळीने प्रसन्न 30 For Private and Personal Use Only

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