________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir काइ बोलता नयी, जाणे छे के आभाविशुं थइ गयुं, म्हें तो आज सुधी पांडवोने प्रिय गण्याछे.॥९॥ श्लोक। संनद्धाःवश्नयोराजन्नृपैःकांचनसुप्रभैःप्रश्वैपारित्तिश्चैवकरीभिजनमेजय॥ // 10 // वैशंपायन कहे छे के हे राजन ए प्रकारे अन्योन्य एक बिजाना सामु जोड्ने सू वर्णमयछे प्रभाकांति ते जेनी एवा रथ अश्व ने हाथीभो तैयार कराविता हवा.॥१०॥ ॥श्लोक॥ सर्वएतेमहाराजनित्रतान गराबहिःज्ञातंतुपांडवैस्तावद्यादवानांरणोद्य मं॥११॥ टीका-हे महाराज ए प्रकारे सर्व यादवो पांडवो साथे संग्रामकरवाने अर्थनग रथी बहारय निसर्या, एवात पांडवोए जाणी तेथी सर्व मांहो माह्य विचार करवा लाग्या. // 11 // ॥श्लोक॥ विचारकततस्तेरात्रौतेपंचपांडवाः॥रणेकोबांधवोपुत्रःपिताचमातुलो यथा // 12 // टीका-रात्रिने विशे पांचे पांडवो विचार करेछे रे बांधवो ज्यम थवार्नु ह तुं त्यम थयुछे, हवे तो रणने विषे, बन्धु वर्ग पुत्र, मातुलेय ए रीतना जे संबंध ते क दापि न गणवा, एक न्यायपक्ष वा जवो, ए रीते क्षत्रिोना धर्मछे. ॥श्लोक // मातुलेयश्चक्रष्णश्वसंबंधनचपश्यतिसस्त्रियुद्धकुशलावयंसर्वेगुरोस्त / पात् ॥१३॥टिका-अर्जुन अभिमन्युने कहेछे रे पुत्र, कृष्ण तदारा मामा थायछे, परं / For Private and Personal Use Only