Book Title: Dangvopakhyanam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, तर सुरोछं, कांश चिंता न करशो. 29 46 // ॥श्लोक // किमेतेज्यादवाःराजन्सदासंग्रामनीरवः॥ वनिक्रश्नंसदाचाहंकपटेन श्र | चयुध्यति // ३०॥हे राजन् शुंए ते यादवो सदाय संग्राममां जीति जाय एवाछे | ढुंए कश्मनी वात सर्वे जाणुंछु निरंतर कपट युद्धना करनाराछे. 30 // श्लोक॥राजभ्योभयमापन्नोसमुद्रेशरणंगतःसदानीचकुलंतेषांयदुनापौरुषंकथं 31 // टिका. ज्यारेज्यारे हारिजाय त्यारे त्यारे क्षीर समुद्रमा जश्ने पेसे छे; सदा य एमनुं निचकुळछे, यदुकुळमां पुरुषातन शुं देखोछो. // 31 // .. ॥श्लोक। नधरानचराज्यंचपुरंनदेशउच्यते // ननादीनचराजेंद्रविवाहाराक्षसाः स्मृताः॥३२॥ टिका. एमने कांइ सुंदीर प्रथ्वी नथी खारो पाट द्वारकामां पडी रहे छे जोइये तो संदिर राज्यपण नथी, देश पण नथी, निरंतर दिनपणामां कापट्य करता फरेछे. जेटला विवाह कर्या तेय पण राक्षसी विवाह कर्याछे.३२ ॥श्लोक // किंकरिष्यतितेसर्वेनीमयुद्धप्रकुर्वतिमानयंकुरुराजेंद्रपष्यत्वंममपौरुषं // 33 // टिका. जे समय दं भिम एमनी साथे युद्ध करीश, ए समय ए शुं जितवा नाछे, माटे करीने हे आपणा सैन्यना राजाश्रो, भय मां धरशो, महारा युद्धनुं पुरु पातन जोयां करो. 33 For Private and Personal Use Only

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