Book Title: Dangvopakhyanam
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. // 11 // इतिश्री तट्टीकायां रैक्व कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां एका | 51 दशोऽध्याय : // 11 // ॥वैशंपायनउवाच॥वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा, ॥श्लोक ॥श्रणु त्वंटेकचित्तेनपारिक्षिद्वचनंमम॥ सर्वेषांपश्यतांतावक्रश्नोवचनमब्रवीत् ॥१॥टिका.हे परिक्षतना पुत्र, हे जन्मेजय राजा, एक चित्तवडे करने तुं सांभळ्य, ते युध्धने वि षे सर्वना जोतां क्रश्न शुं बोलता हवा, ए हूं तने संनळावुछु. 1 ॥श्री कृष्ण उवाच ॥श्रीक्रश्न शुं बोलता हवा. ॥श्लोक // पांमुपुत्रमहाबाहोपां || डवानांधनुर्धरः॥ जगतित्वंचविख्यातोममसाकंरणंकुरु॥२॥ टिका- हे पांडपूत्र हे पां डवोना मध्ये धनुर्धर, अर्जून बाप, जगतमां तुं तो महा विख्यात थइ गयोई. परंतु तुं मदारी साथे एक वार युद्ध करच, तेणे करीने महारुं चित्त प्रसन्न थै जशे. ॥श्लोक॥ त्वंचद्रोणेनचाधिताधनुर्विद्याचशंकरात् // नत्वंपिवस्वस्त्रेयाश्चमातुले योह्यहंतव // 3 // ॥टीका-शंकरना प्रसादवडे करीने पामेला एवा जे द्रोणगुरु ते ना थकी ते धनुर्विद्या भणी, ते गर्वने लीधे, पिता वर्ग, स्वसूरवर्ग अने मातुलवर्गि हूं ए कोइ तहारी गणनामां हवे नथी एवोज निश्चय थै जाय. 3 ॥श्लोक॥ हृदयेबलमानीयकर्त्तव्योरणसंगरः॥ यूयंचैवतुराजानोवयंनीचकुलस्म 51 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132