Book Title: Dangvopakhyanam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रोषंमोचयसंगरात्॥ प्रलयश्चभवेद्वीरकाशोभाजायतेतव // 23 // टिका-हे महावीर / तने धन्य छे धन्य छे, हवे तो रोष मुकी दे, हे वीर जगतनो प्रळय थशे तेमा ताहारी शी शोभा छे. 23 ॥श्लोक॥ सदायूयंमहावीर्याःक्षत्रिवधिनुर्धरा : वयंचनीचतांप्राप्तानराज्यफल्गु प्राक्रमा : // 24 // टिका-सदाय भाइ तुं महा विर्यवान छ, ताहारा जवो क्षत्री धर्मनो राखनारो में दीठो नथी, हुँतो ताहाराथी निच पराक्रमी डूं, ज्यम सिंह ने शीआळ ए प्रमाणे गणती छे. 24 ॥श्लोक। प्रजापालनषष्ठ्यांशोराजनीतिर्महाबल एतेक्षत्रिगुणाःप्रोक्तारहितस्तै नरोधमः॥२५॥ टीका-प्रजान पालण करीने षष्ठांश लेवो ए राजनीतिनो धर्म छे,ते क्षत्रीपणुं ताहारामां दिसे छे,अने एथी उलटो चाले ते अधर्म कहेवाय. 25 ॥श्लोक। वयंतुदासतांप्राप्ताःभीमसेनंमहाबल ऋष्णस्यवचनंश्रुत्वाहास्यंचक्रेस पांडवः // 26 // टीका-भाइ हवे ढुं श्रा समय दासताने पांम्यो, अने तुंतो महा। वळ पराक्रमी छु, एवा ऋष्णनां वचन सांभळीने सघळाय राजाश्रो पांडव सुद्धा हसवा लाग्या. 26. ॥श्लोक॥ आनीतातुरगीराजन्डांगवस्यसमीपतः धृतंचहृदयंतस्याःटष्टेभीमेन For Private and Personal Use Only

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