Book Title: Dangvopakhyanam
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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नकमुनेडांगवस्यकथानकं // दृश्नीपांडवयोःस्पर्धाकार्तिताचतवाग्रतः ॥४०॥॥टिका. हे शौनकादिकमुनिश्रो, डांगवनु कथानक अने यादव पांडवने स्पर्धा थइ ते समयनो // इतिहास में तमने संभळाव्यो, // श्लोक // अवापितामहकयांजनमेजयनूपतिः॥प्रीतःप्रसन्नहृदयोरुषिसप्तमपु | जयत्॥११॥ टिका ए इतिहास पोताना पितामहनामुखथी जनमेजय राजा सांभळीने प्रसन्न हृदय होतो हवो, अने सर्व रुषी मंडळने पूजतो हवो.४१ ॥श्लोक // ददौदानंतदाराजाभूमिगौहयकुंजरान् // वैशंपायश्चप्रीतश्चदत्वाशी चवनंगतः४२॥ टिका हर्षयुक्त जनमेजय राजा सांनळीने, भूमी गायो, हय कुंजरो नां दान यथार्थ रीते करितां हवां, अने तदपश्चात् वैशंपायनमुनि जनमेजय राजाने आशिर्वाद दश्ने वनप्रति तपश्चर्या करवाने गति करता हवा. ॥श्लोक॥ तत्रगंगाचयमुनाकुरुक्षेत्रंचपुष्करंतत्फलंसमवाप्नोतिनश्यतित्रिविधंत्र घः 43 ॥टिका. आजे कोइ ऋष्णन किर्तन सांनळेछे तेने गंगा यमनां, कुरुक्षेत्र प ष्कर ए सर्व तिर्थो नहावानु फळ प्राप्त थायछे एटलुंज नही पण सर्व पाप तेनां मुक्त थइ जायछे. 43 ॥श्लोक॥ यजनात्सेवनाद्विश्नोःस्नानादानाजपातपात्॥यत्फलंचनवेत्सर्वंतत्फ For Private and Personal Use Only

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