Book Title: Dangvopakhyanam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डॉग. उर्वशीनी शाप मुक्त थवाने काजे, साढावणवजनों संयोग हवे थशे. ॥श्लोक // एकंवचंगदाप्रोक्ताद्वितीयंचक्रमुच्यते तृतीयंहनुमान्प्रोक्तोनीमप्रष्ठो| 13 |र्धमुच्यते // 12 // टिका- हे नृप एक वजर तो गदा छे, बिजूं वजर चक्र छ, त्रीजू व जर हनुमन्त, अने अरg वजर एक पासानु भिमनुं अंग, ए साढा त्रण वजरनो सं| योग थशे.१२ ॥श्लोक।। सर्वेतेपांडवानीकाःयादवैः सहमीलिताःत्यक्तंबैरंतदासःननीमेननरा ध्रिप॥१३॥ टिका.वैशंपायन मनि जन्मेजयने कहछे के हे नराधिप, यादवोने पांड वोये वैर मकी दीधां, ने भेगा नळी गया,परंतु निमसेनतो रोसे नराणा रह्या, एम ने तो कांइ गमतु आव्युं नही. ॥श्लोक॥ तदाब्रह्माचक्रष्णश्चरुद्रोशकस्तथैवचाभाभिःसहितोराजाधार्तराष्ट्रः / सुयोधनः॥१४॥ ते समयतो, ब्रह्मा क्रष्ण रुद्र ईंद्र अने सो नाइयो सुधां दुर्योधनरा जा एकठा थजायछे.१४ ॥श्लोक // द्रोणश्चैवकृपाश्चैवनीष्मोकर्णजयद्रथौदेवाश्चदानवायक्षाः सिद्धचारण। पन्नगाः // 15 // टीका. एटलूंज नही, पण द्रोणाचार्यजी, कृपाचार्यजी, भिष्म, ! कर्ण, जयद्रथ, देव दानव, यक्ष सिद्ध चारण पन्नग सुध्धां जेटला त्यांछे, ते एकठ। For Private and Personal Use Only

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