Book Title: Dangvopakhyanam
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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक॥ तस्यावचनमाकर्ण्यहर्षमापधनुर्धर : // श्रागतोशीघ्रमनयाराझीपार्थे समागमत् // 32 // टीका-ते दासीना वचन सांभळीने हर्षयुक्त थयो एवो जे डांगव राजा तेतो तात्काळ सुभद्राजी पासे जतो हवो. 32 ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यसुभद्रांचप्रांजलिःप्रणतःस्थित : दृष्टवातत्रचराजानंसुभद्रा वाक्यमब्रवीत् // 33 // टीका-सुनद्रा पासे जइ बे हाथ जोडी नमस्कार करेछे, तेटलामां ते राजानुं उतरी गयेनु मुख जोइने सुभद्राजी बोले छे. 33 सुभद्राउवाच॥ सुनद्राजी बोलता हवा;॥श्लोकाकोसौत्वंराजरूपणकिमर्थदग्धु मिछसि सुनद्रावाक्यमाकर्ण्यराजावचनमब्रवीत्॥३४॥ टीका-रेतमे राजरूप कोणछो, अने केम बळवू इच्छोछो,एवां वचनसुनद्रानां सांभळीने तात्काळ राजा बोले छे. 34 / ॥डांगवउवाच॥ हवे डांगव शुं बोलतो हवो ; ॥श्लोक // अहंतुडांगवोराजा | काश्यांगंगातटेशुने॥ उर्वशीअप्सराहेयीरूपमास्थायचागता // 35 // टीका-हे मात, / शुभ एवं जे गंगातट ते उपर काशीपुर ते स्थळने विषे राज्य करनारो एवो हुं माहारु। नाम डांगव छे, ऋषिना शापथी घोडीरुप थयेली एवी जे उर्वशी तेतो माहारा भाग्यवडे करीने माहारा शीमाडामांथी मने प्राप्त थइ छे. 35 ॥श्लोकदैवयोगान्मयामातआनिताममवेश्मनि क्रष्णेनयत्समाख्यातंमांदेहीति For Private and Personal Use Only

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