Book Title: Dangvopakhyanam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डागः ॥श्लोक॥ तस्यपादौमहाराजसवकल्याणामिछसि॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वाक्रोधेन श्र. 21 प्रलयंगत // 22 // टीका-माटे करीने हे राजा एमना पाद सेवन करीने जो कल्याण इच्छे तो अश्वनी प्राप्य, ए प्रकारे समुद्रनां वचन सांभळीने मनसाथे महा प्रलय प्रलय थइ जतो हवो. 22 ॥श्लोक॥ गताब्रह्मपुरेशोकसंविग्नहृदयोन्पः॥ चतुराननमायातोनमस्कृत्यपुरः स्थितः // 23 // टीका-शोकवडे करीने संभ्रमित थयुं छे, मन ते जेनें एवो जे डांगव तेतो ब्रह्मपुरी प्रत्ये गति करे छे, हे नृप हे जन्मेजय ब्रह्मा पासे भावी नमस्कार करतोथको वाणि बोले छे. 23 ॥डांगवउवाच // डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक।नमस्तेभगवन्देवपितामहजगद्गुरो।यथायंसात्विकोदेवस्तथात्वंराजसः स्मृतः // 24 // टीका-हे देव हे पिता मह, दे जगद्गुरु तमने हुं नमस्कार करंछु, तमे / राजसी प्रक्रतीवाळाछो,अने क्रष्णतो सात्विकी गुणवाळोछे. 24 लोक॥ त्वत्समोनास्तिभोब्रह्मन्पाहिमांशरणार्थिनांगममापितुरगींक्रष्णोक्लान्न यतिद्वारकां // 26 // टीका-ए माहारी विना अपराधे श्रा तुरगी द्वारिका मंगावी खंची ले छे, माटे हे ब्रह्मदेव तमारे शर्ण श्राव्योछु, तमारा सरखो शरणागतवच्छळ कोइ नथी एज हेतुमाटे माहारं रक्षा करो. 25 For Private and Personal Use Only

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