Book Title: Chobis Tirthankar
Author(s): Rajendramuni
Publisher: University of Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ 39 भगवान पार्श्व के जीवन- प्रसंगों में, जैसे कि सभी महापुरुषों के जीवन- प्रसंगों में रहते हैं, अनेक चमत्कारिक अद्भुत प्रसंग हैं, जिनकों लेकर कुछ लोगों ने उन्हें पौराणिक महापुरुष माना । किन्तु वर्तमान शताब्दी के अनेक इतिहासज्ञों ने उस पर गम्भीर अनुशीलनअनुचिन्तन किया और सभी इस निर्णय पर पहुँचे कि भगवान पार्श्व एक ऐतिहासिक महापुरुष हैं। सर्वप्रथम डाक्टर हर्मन जेकोबी ने जैनागमों के साथ ही बौद्ध पिटकों के प्रमाणों के प्रकाश में भगवान पार्श्व को एक ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध किया। 72 इसके पश्चात् कोलब्रुक, स्टीवेन्सन, एडवर्ड, टामस, डा. बेलवलकर, दास गुप्ता, डा. राधाकृष्णन्, शार्पेन्टियर, नोट, मजूमदार, ईलियट और पुसिन प्रभृति अनेक पाश्चात्य एवं पौर्वात्य विद्वानों ने भी यह सिद्ध किया कि महावीर के पूर्व एक निर्गन्थ सम्प्रदाय था और उस सम्प्रदाय के प्रधान भगवान पार्श्वनाथ थे। 73 डाक्टर वासम के अभिमतानुसार भगवान महावीर को बौद्ध पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किया गया है, एतदर्थ उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। भगवान पार्श्व चौबीस तीर्थंकरों में से तेईसवें तीर्थंकर के रूप में प्रख्यात थे। 74 डाक्टर चार्ल्स शार्पेन्टियर ने लिखा है "हमें इन दो बातों का भी स्मरण रखना चाहिए कि जैनधर्म निश्चितरूपेण महावीर से प्राचीन है। उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्श्व प्राय: निश्चितरूपेण एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं एवं परिणामस्वरूप मूल • सिद्धान्तों की मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्र रूप धारण कर चुकी होंगी। "75 विज्ञों ने जिन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व महावीर से पूर्व सिद्ध किया है। वे तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं 72 The Sacred Books of the East, Vol. XLV Introduction, page 21: That Parsva was a historical person is now admitted by all as very probable... 73 Indian Philosophy: Vol. I., Page 287 74 The Wonder that was India (A.I. Basham, B. A., Ph. D., F.R.A.S.), Re printed 1956., pp. 287-288. "As he (Vardhaman Mahavira) is referred to in the Buddhist scriptures as one of the Buddha's chief opponents, his historicity is beyond doubt.....Parswa was remembered as twenty-third of the twentyfour great teachers or Tirthankaras "ford-makers' of the Jaina faith." 75 The Uttaradhyana Sutra : Introduction, Page 21 : “We ought also to remember both--the Jain religion is certainly older than Mahavira, his reputed predecessor Parsva having almost certainly existed as a real person, and that consequently, the main points of the original doctrine may have been codified long before Mahavira." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224