Book Title: Chobis Tirthankar
Author(s): Rajendramuni
Publisher: University of Delhi

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Page 213
________________ भगवान महावीर स्वामी 155 शिष्यों के समक्ष स्वीकार किया कि भगवान महावीर का विरोध करके मैंने घोर पाप किया है। इसका यही प्रायश्चित है कि मरणोपरान्त मेरे शव को श्रावस्ती में मार्गों पर घसीटा जाय। इससे सभी मेरे दुष्कर्मों से अवगत हो सकेंगे। उसने अपने शिष्यों को भगवान की शरण में जाने का निर्देश भी दिया। सातवें दिन गोशालक का देहान्त हो गया। प्रायश्चित ने उसके कर्म-बन्धनों से उसे मुक्त कर दिया और अंमि शुभ भावों के कारण उसे सद्गति प्राप्त हुई। परिनिर्वाण प्रभु का आयुष्य 72 वर्ष का पूर्ण हो रहा था और ईसापूर्व 527 का वह वर्ष था। भगवान का 42वाँ वर्षावास पावापुर में चल रहा था। प्रभु अपना निर्वाण समय समीप अनुभव कर निरन्तर रूप से दो दिन तक उपदेश देते रहे। 9 लिच्छवी, 9 मल्लवी और काशी कौशल के 18 नरेश वहाँ उपस्थित थे, जो सभी पौषध व्रत के साथ उपदेशामृत का पान कर रहे थे। असंख्य जन भगवान के दर्शनार्थ एकत्रित थे। भगवान के अन्तिम उपदेश से ये सभी कृतकृत्य हो रहे थे। कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि का अन्तिम प्रहर और स्वाति नक्षत्र का शुभयोग था-तब भगवान महावीर स्वामी ने समस्त कर्मों का क्षय कर निर्वाण पद की प्राप्ति करली। वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। भगवान के परिनिर्वाण के समय उनके परम शिष्य और गणधर इन्द्रभूति गौतम वहाँ उपस्थित नहीं थे। वे समीपवर्ती किसी ग्राम में थे। भगवान का परिनिर्वाण और गौतम को केवलज्ञान व केवलदर्शन की प्राप्ति एक ही रात्रि में हुई। इन दोनों शुभ पर्वो का आयोजन दीपमालाएँ सजाकर किया गया था और इन्हीं शुभावसरों की स्मृति में इस दिन प्रतिवर्ष प्रकाश उत्सव आयोजित करने की परम्परा चल पड़ी, जो आज भी दीपावली के रूप में विद्यमान है। रात्रि के अंतिम प्रहर में गौतम केवली हुए इसलिए अमावस्या का दूसरा दिन गौतम प्रतिपदा के रूप में आज भी मानाया जाता है। धर्म-परिवार भगवान महावीर स्वामी द्वारा स्थापित चतुर्विध संघ के अन्तर्गत धर्म परिवार इस प्रकार था गणधर केवली मन:पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी 700 500 1,300 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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