Book Title: Chobis Tirthankar
Author(s): Rajendramuni
Publisher: University of Delhi

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Page 193
________________ भगवान महावीर स्वामी माँ के मन में अपनी भावी संतति के प्रति तो अगाध वात्सल्य और ममता का भाव था, गर्भस्थ भगवान को उसकी अनुभूति होने लगी। उन्होंने निश्चय किया कि ऐसे ममतामय माता-पिता के लिए मैं कभी कष्ट का कारण नहीं बनूँगा। भगवान ने गर्भस्थ अवस्था में ही इस आशय का संकल्प धारण कर लिया कि अपने माता-पिता के जीवन काल में मैं गृहत्यागी होकर, केशलुंचनकर दीक्षा ग्रहण नहीं करूँगा । - गर्भ की कुशलता का निश्चय हो जाने पर पुनः सर्वत्र हर्ष फैल गया। प्रमुदित मन से माता और अधिक संयमपूर्ण आहार-विहार के साथ रहने लगी। गर्भावधि के 9 मास और साढ़े 7 दिन पूर्ण होने पर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की अर्द्ध रात्रि में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में (30 मार्च 599 ई० पू० ) रानी ने एक परम तेजस्वी पुत्रश्रेष्ठ को जन्म दिया। शिशु एक सहस्र आठ लक्षणों और कुन्दनवर्णी शरीर वाला था । कुमार के जन्म से त्रिलोक में अनुपम आभा व्याप्त हो गयी और घोर यातनाओं के सहने वाले नारकीय जीवों को भी पलभर के लिए सुखद शांति की अनुभूति होने लगी। 56 दिक्कुमारियों और 64 इन्द्रों ने मेरु पर्वत पर भगवान का जन्म कल्याण महोत्सव मनाया। शक्रेन्द्र ने भगवज्जननी रानी त्रिशला को अभिवान किया और भगवान को महोत्सव स्थल पर ले आया। भगवान को विधिपूर्वक जब शक्रेन्द्र ने स्नान कराया तो उनके शरीर की आकार- लघुता देखकर उसका मन सशंक हो गया और अवधिज्ञान से यह सब ज्ञात कर भगवान ने समस्त पर्वत को कम्पित कर दिया। इस प्रकार इन्द्र की शंका को भगवान ने दूर कर दिया। जन्मोत्सव सम्पन्न हो जाने पर भगवान को पुनः माता के समीप पहुँचाकर इन्द्र ने नमन के साथ प्रस्थान किया । 135 कुमार- जन्म से सारे राज्य में हर्ष ही हर्ष फैल गया। जन्मोत्सव के विशद् आयोजनों द्वारा यह हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त होने लगी। भगवान के जन्म के प्रभाव से ही सारे राज्य में श्री समृद्धि होने लगी और विपुल धन-धान्य हो गया था । नामकरण पिता महाराजा सिद्धार्थ ने यह अनुभव किया कि जब से कुमार माता के गर्भ में आए थे तब से राज्यभर में उत्कर्ष ही उत्कर्ष हो रहा था। समस्त राजकीय साधनों, शक्ति, ऐश्वर्य, प्रभुत्व आदि में भी अद्भुत अभिवृद्धि हो रही थी। अतः पिता ने प्रसन्न मन से पुत्र का नाम रखा - वर्धमान | बाल्यावस्था में भगवान का 'वर्धमान' नाम ही अधिक प्रचलित हुआ, किन्तु भगवान के कुछ अन्य नाम भी थे - वीर, ज्ञातपुत्र, महावीर, सन्मति आदि। ये नाम भगवान की विभिन्न विशेषताओं के संदर्भ में विशिष्टता के साथ प्रयुक्त होते हैं। इनमें से एक नाम 'महावीर' इतना अधिक ग्राह्य और लोक- प्रचलित हुआ कि इसकी प्रसिद्धी ने अन्य नामों को लुप्तप्राय ही कर दिया। Jain Education International भगवान को महावीर नाम से स्मरण करना, उनकी एक महती विशेषता को हृदयंगम करने का प्रतीक है। वस्तुतः भगवान 'वीर' ही नहीं महावीर थे। वीर तो वह है, जो अपनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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