Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2 Author(s): Amarmuni Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan View full book textPage 6
________________ आमुख अपनी 'अमर भारती ' मासिक पत्रिका द्वारा जैन धर्मीय आधुनिक विचारक महासन्त अमर मुनिजी अपनी अलौकिक कलम द्वारा जो दिव्य समाज प्रबोधन कर रहे हैं, उसी शृंखला की संहिता इस ग्रन्थ में पायी जाती है। मर्त्य मानव को अमरत्व के संस्कार इस महान ग्रन्थ में उपलब्ध हैं। हर व्यक्ति को ज्ञात है कि उसे मरना है, फिर भी वह अमर होने की कांक्षा रखता है। यदि मृत्यु वस्तुस्थिति है तो मृत्यु का आनागमन उसकी मन:स्थिति है। मृत्यु अटल है तो अमरण की भावना भी प्रबल है। इन दोनों की एकत्रित विचार धारा ही आत्म ज्ञान की - धर्म की गंगोत्री है। सुख-शान्ति की भावना, समाज की धारणा तथा मृत्युंजय प्रेरणा इस त्रिवेणी से सालंकृत मानव धर्म ही सर्व धर्मों का निचोड है, रहस्य है। चिरशान्ति के लिए अनासक्ति, समाज हितार्थ सेवाशक्ति एवं आत्मशरण जीवन मुक्ति के संगम में ही मानव जीवन की सफलता है। यही सर्व धर्मीय. अध्यात्म ज्ञान का सार है। इसी सार का आरोपण संसारी जनों की मनोबुद्धि में करना एवं उसी के द्वारा ही आत्म कल्याण एवं विश्वकल्याण की सिद्धि प्ररूपित करने धर्म प्रवर्तक सन्त महन्त इस धरातल पर अवतरित हुए हैं। इसी दिव्य आर्ष परम्परा की विभूति श्री अमर मुनिजी आज भी हमारे सन्मुख प्रस्तुत हैं। हमारा अहोभाग्य है कि इसी आत्म-विश्व कल्याणकारी आत्मधर्म का यथार्थ रहस्य प्रस्थापित करने का समाज प्रबोधन कार्य वे गत ६-७ दशकों से कर रहे हैं। जिस प्रकार भगवद्गीता प्रभु श्रीकृष्ण की वाङ्मयी मूर्ति है, उसी प्रकार अमर भारती श्री अमर मुनिजी की कलाकृति है। इस कथन में मुझे जरा भी हिचकिचाहट नहीं है। श्री अमर मुनिजी जो भी जैन धर्मीय सन्त के नाते विख्यात हैं, फिर भी इस ग्रन्थ में हमें उनका जीवन दर्शन प्रतीत होता है कि तथाकथित सभी विभिन्न धर्म, धर्म न हो कर आध्यात्मिक मानवता वादी आत्मधर्म अथवा मानव धर्म ही एकमात्र धर्म है; और ये सभी धर्म उसीके उपधर्म यानी सम्प्रदाय हैं। वर्तमान समय में ये तथाकथित धर्म नीतिधर्म के ऐवज में जातिधर्म पर ही जोर देते हैं। धर्म के नाम से असहिष्णुता, संकुचितता, अभिनिवेश, परविद्वेष व तज्जन्य जातीय तनावों से समाज जीवन अशान्त एवं उध्वस्त होता जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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