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चन्द्रप्रभचरितम्
[ ३ ] महाकवि माघ ( ई० ७वीं शतीका अन्तिम चरण ) और वीरनन्दो
चं० च० - १५,६०, ५, ७६-७७;
६, २२; ८,५८; १४,४७,
जैन व जैनेतर ग्रन्थोंके साथ की गयो चं० च० की इस संक्षिप्त तुलनासे वीरनन्दीके व्यापक अध्ययनका पता चलता है ।
[९] चं० च० की साहित्यिक सुषमा
चं० च० एक महाकाव्य - निर्दोष, सगुण, सालङ्कार और कहीं ( जहाँ रस आदिको स्पष्ट प्रतीति हो ) निरलङ्कार भी शब्द और अर्थ दोनोंका जहाँ सुन्दर सन्निवेश हो उसे काव्य कहते हैं । दृश्यकी भाँति श्रव्यकाव्य की भी अनेक विधाएं है । महाकाव्य उन्हीं में से एक है । आठ सर्पोंसे अधिक सर्गबद्ध रचनाको महाकाव्य कहते हैं । इसमें देव या धीरोदात्तत्व आदि गुणोंसे विभूषित कुलीन क्षत्रिय एक नायक होता है । कहीं एक वंश के कुलीन अनेक राजा भी नायक होते हैं । इसमें शृङ्गार, वीर और शान्त - इन तीनोंमें से कोई एक रस अङ्गी ( प्रधान ) होता है और शेष अङ्ग ( अप्रधान ) । नाटकोंकी भाँति इसमें भी मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श और निर्वहण - ये पांच सन्धियाँ होती हैं । इसकी कथा ऐतिहासिक या लोकविख्यात सज्जन से सम्बद्ध होती है । इसमें धर्म आदि चारों पुरुषार्थोंकी चर्चा रहती है, पर फलका सम्बन्ध एकसे ही रहता है । इसका आरम्भ आशीर्वाद, नमस्कार या वर्ण्य वस्तु के निर्देशसे होता है। इसमें दुर्जनों की निन्दा और सज्जनों की प्रशंसा रहती है । प्रत्येक सर्ग में एक छन्दका प्रयोग रहता है, पर उसके अन्त में अन्य छन्दों का भी । किसी एक सर्गमें अनेक छन्द भी प्रयुक्त होते हैं । सर्गके अन्त में अगले सर्गकी कथाकी सूचना रहती है । इसके वर्ण्य विषय हैं - राजा, रानी, पुरोहित, कुमार, अमात्य, सेनापति, देश, ग्राम पुर सरोवर'", समुद्र े, सरित् , उद्यान ४, पर्वत अटवी, मन्त्रणा, दूत", प्रयाण",
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૨૨ ऋतु "
सूर्य,
चन्द्र २४, आश्रम युद्ध", विवाह, वियोग, सुरत, स्वयंवर, और जलक्रीड़ा । आलङ्कारिकोंके अभिप्रेत महाकाव्य के लक्षणकी कसोटीपर चं० च० का महाकाव्यत्व खरा उतरता है, जो सर्वमान्य है |
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मृगया- अश्व पुष्प वचय
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शिशुपाल वध – ५, ४४; १,१४-१५; २,१३; ८,६६;
५,२७,
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१. काव्यप्र ० १, १ । २. साहित्यद० ६, ३१५ - ३२१ । ३. अलङ्कारचि ० १ २४ । चं० च० के वर्ण्य विषय - ४. राजा - कनकप्रभ १, ३९-५४; श्रीषेण ३, १-१३ अजितंजय ५ २३-२५; महासेन १६, ११-१५; चन्द्रप्रभ १७, ५२-६० | ५. रानी - सुवर्णमाला १, ५५-५७; श्रीकान्ता ३, १४-१८ अजितसेना ५, ३६-३९; लक्ष्मणा १६ १६ - १९ कमलप्रभा १७, ६० । ६. पुरोहित ७, १४ । ७. कुमार - पद्मनाभ १, ५८६३; श्रीवर्मा ४, १-१४, अजितसेन ५, ४०-४४ चन्द्रप्रभ १७ ५० । ८ देश मङ्गलावती १, १२- २०; सुगन्धिदेश २, ११४- १२४; अलका ५ २- ११; अरिंजय ६, ४१; पूर्वदेश १६, १-५ । ९. ग्राम १, २०; २, ११८ । १०. पुर - रत्नसंचय १, २१-३८; श्रीपुर २ १२५-१३२; कोशला ५, १२-२२; विपुलपुर ६, ४२; आदित्यपुर ६, ७५; चन्द्रपुरी १६, ६-९ । ११. सरोवर - मनोरम ६, १ । १२. समुद्र ४, ६५, १६, २९-३० । १३. सरित् -जलवाहिनी १३, ५३-६२ । १४. उद्यान - मनोहर २, १२-२३ । १५. पर्वत ६, १२, मणिकूट १४, १-४० । १६. अटवी - परुषा ६, ५-१० । १७. मन्त्रणा १२, ५७ - १११ । १८. दूत १२, १२४ । १९. प्रयाण ४, ४७-५१; ७, ५९-८०, १३, १-५२; १६, २४- ५३ । २०, अश्व १४, ५१-५४ । २१. गज १४, ५५-६२ । २२. ऋतु ८, १-५१ । २३. सूर्योदय १०, ७६-७९; सूर्यास्त १०, १-३ | २४. चन्द्रोदय १०, १७- ४१; चन्द्रास्त १०, ६३ । २५. आश्रम ११, ३४ । २६. युद्ध १५, १-१३२ ॥
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