Book Title: Bruhad Dravya Sangraha Author(s): Bramhadev Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 7
________________ [घ] संस्कृत टीका तथा हिम्दी अनुवाद सहित “ श्री गणेशवर्णी दि० जैन ग्रंथमाला" को ओर से प्रकाशित किया गया है । 1 प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों से मिलान करके पाठ का संशोधन तथा छूटे हुए पाठ की पूर्ति करदी गई है । छूटे हुए पाठ किसी-किसी स्थल पर ३-४ पृष्ठ प्रमाण थे । अनेकांत वर्ष १२, किरण ५ से २५-गाथा प्रमाण लघुद्रव्यसंग्रह भी उद्धृत करके अर्थ सहित सम्मिलित करदी गई है । प्रस्तुत संस्करण में विस्तृत विषय-सूची, संस्कृतटीका में उद्घृत गाथा तथा श्लोकों की वर्णानुक्रम सूची (जिसमें अन्य ग्रन्थों के नाम, जहाँ पर उक्त गाथा या श्लोक पाये जाते हैं, दिये गये हैं), पारिभाषिक शब्द सूची, वृहद् व लघु द्रव्यसंग्रह की अकारादिक्रमेण गाथा सूची और पाठ के लिये एक स्थल पर वृहद् द्रव्यसंग्रह की समस्त गाथायें दी गई हैं । जिससे ग्रन्थ की उपयोगिता में वृद्धि और विषय - अन्वेषण में सुविधा होगई है। इस ग्रन्थमाला को श्रीमती सो० पुष्पादेवी धर्मपत्नी ला० हरिचन्दमल, भरिया, ने २५०० रु० तथा महिला-समाज (गया), ने ५००रु० प्रदान किये हैं । इस ग्रन्थ के संशोधनप्रकाशन में बा० ऋषभदास (मेरठ), ला० अर्हदास, ला० मेहरचन्द, श्री रत्नचन्द मुख्तार व बा. नेमचन्द वकील (सहारनपुर), पं० पन्नालाल साहित्याचार्य (सागर), पं० जुगलकिशोर मुख्तार, वीरसेवा - मंदिर ( देहली), पं० सिखरचंद शास्त्री (ईसरी), पं० सरदारमल (सिरोंज), भैया त्रिलोकचन्द्र (खातोली) तथा ब्र० चन्दनमल ने सहयोग दिया है। श्री सुखनन्दनकुमार ( कुमार ब्रदर्स) ने कागजी सुविधा एवं श्री पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' ( साहित्य प्रिंटिंग प्रेस) ने मुद्रण संबंधी हर प्रकार की सुविधा दी है । ग्रन्थमाला इन सभी सज्जनों का आभार मानती है । प्रूफ़ - संशोधन का कार्य एक विचित्र कला है, काफ़ी सावधानी रखने पर भी भ्रम-वश तथा दृष्टि-दोष आदि कारणों से अशुद्धियाँ रह गई; जिसका खेद है । कागज आदि का मूल्य बढ़ जाने पर भी इस ग्रन्थ का मूल्य सर्वसाधारण के हितार्थ बहुत कम रक्खा गया है । आशा है तत्वान्वेषी इससे लाभान्वित होंगे । दीपावली वीर नि० सं० २४८५ नवम्बर, १६५८ Jain Education International :: सिखरचन्द्र जैन, मंत्री, श्रीगणेशवर्णी दि० जैन ग्रन्थमाला खरखरी (धनबाद) विहार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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