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को तहस-नहस कर, सभ्य समाज और संस्कृति के लिये अभिशाप रूप बनी हुई ऐसी विचित्र और निरंकुश अनुकरण विधाओं को अपनाने वाली नारियों पर सचमुच तरस ही आता है... विशेषकर उन पर... जो एम. ए., बी. ए. जैसी उच्च शिक्षा से शिक्षित होने का दावा करती है...।
इसी भयंकर पाप का नाम है...
और इसी का दूसरा नाम है ...
मर्यादा हनन...!!
उठो ! माताओं... बहिनों... अभिभावकों...!!
'अब रैन कहाँ जो सोवत है'... अब तो समय है जूझने का ... संस्कृति मैया की सुनकर उसकी लाज बचाने का...
पुकार को
संस्कृति मैया का चीर हरण...॥
" खूब लड़ी मरदानी वो तो,
झाँसी वाली रानी थी । ..."
आर्यमाताओं... आर्य बहिनों ... अब तो निश्चित रूप से बतानी ही होगी वह मरदानगी... और उन आचार विचारों का शीघ्र बहिष्कार करना होगा, जो आर्य
संस्कृति के लिये खतरनाक हैं ।
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Charity begins at home... पहले आप अपने जीवन से ऐसे मर्यादा हनन पूर्ण व्यवहारों को तिलाजंलि दे दो... अपनी स्वच्छंदवृत्तियों को कब्र खोदकर गहरे दफना दो... जलती आग में झोंककर भस्मसात् कर दो... और फिर देखो... आपमें रही हुई वह वैचारिक क्रांति की ज्वाला किस तरह समूचे राष्ट्र और विश्व की काया पलट देती है ।
बचाओ ... बचाओ... !!
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एक जंग छड़ना है... मर्यादाहन्ताओं के साथ... माँ संस्कृति के चीरहरण करनेवाले दुःशासन और उनका समर्थन करनेवाले दुर्योधनों के साथ...!
हां, तो संस्कृति मैया की लाज बचाने के लिए उठाने ही पडेंगे वे क्रान्ति कदम... और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आगे कूच करनी ही पड़ेगी....
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