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बुझाने के लिये आ रहे औजार से बचने के लिये वह कुछ पीछे हट जाता है। उसके आसपास की नलिका और उसका आवरण शस्त्रों से सच्छिद्र बन जाने के बाद उसको झपट कर लेने का... और छिन्न कर उसका निकंदन निकालने की प्रक्रिया का आरंभ हो जाता है ।
बालक के मस्तक और धड़ को झटके से अलग कर दिया जाता है। तब वेदना से वह चीख उठता है । यह है - 'ध साइलेंट स्क्रीम ( गूंगी चीख ) ! सिर को तोड़ते वक्त अनस्थिजिया देने वाला व्यक्ति तबीब को कहता है... 'बस अब यह बाकी रहा है नंबर वन !' फिर फोरसेप से दबाकर कठिन खोपड़ी को तोड़ कर विसर्जित कर दी जाती है ।
एक जीते-जागते जिन्दे, रक्षणविहीन (डिफेंसलेस) नन्हें व्यक्ति की हत्या करने वाले को इंडियन पीनल कोड की धारा ( 301) के तहत मर्डर के लिये पकड़ा नहीं जाता । यह अफसोस की बात है ! रोनाल्ड रीगन (American president) को 'ध साइलेंट स्क्रीम' पसंद आई और उन्होंने प्रत्येक अमेरिकन संसद सदस्य (क्रोंग्रेसमेन) से, इस फिल्म को देखने का अनुरोध किया था । रीगन एबोर्शन के कानून को बदलने के लिये आतुर थे । अमेरिकन राष्ट्रपति ज्योर्ज बुश ने भी गर्भपात का विरोध किया था ।
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ब्रिटेन के कुछ तबीबों ने कहा है कि यह फिल्म अतिशयोक्ति बता रही है, उसमें स्पेशियल इफेक्ट्स है, उसमें विकृतियाँ है । लेकिन जब उन महाशयों को फिल्म निर्माता वर्ग पूछता है कि भाई ! इसमें कौनसी टेक्नीकल क्षति है ? तब उनकी तूती बंद हो जाती है और वे चुप्पी साध बैठते हैं, क्योंकि 'ध साइलेंट स्क्रीम' एक सच्ची फिल्म है । एक दर्दनाक कटु सत्य है !
सत्य हमेंशा कल्पना से भी ज्यादा और बातें करने से भी कहीं अधिक भयावह और चौंकाने वाला होता है । भारत में संसद सदस्य यदि 'ध साइलेंट स्क्रीम' देख लें, फिर एबोर्शन के कायदे-कानून में उन्हें काट-छाँट करनी ही पडेगी ।
'ध सायलेंट स्क्रीम' के आलोचक कहते हैं कि इस फिल्म में भ्रूण या गर्भ को एनलार्ज कर ( कुछ बड़ा बताकर ) बताया गया है और वह उस तबीबी साधक को देखकर दूर भागता है, ऐसा बताने के लिए, उसमें गतिशीलता लाने हेतु 'ट्रीक सीन' का प्रयोग किया गया है ।
डॉक्टर नेथेनसन इस आक्षेप के सामने चेलेंज फेंकते हैं, उसे चुनौती देते हैं । उन्होंने निःशेष रूप से सिद्ध कर दिया है कि 16 सप्ताह का भ्रूण मनुष्य जैसा ही
बचाओ ... बचाओ... !!
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