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संतुलन बिगड़ता है, भूकंप के झटके आते हैं ? तो क्यों न हिंसा को रोका जाय ? संविधान में गो हत्या बंधी का आश्वासन भी दिया गया है ।
आंकड़ों में देखें तो पन्द्रह वर्ष पूर्व सभी १९९२ में २००० करोड़ विदेशी मुद्राएँ कमाने का लक्ष्य था, वर्तमान की परिस्थिति तो काफी बदल चुकी है । १,१०,००० करोड़ साफ्टवेयर से ७५००० करोड़ टेक्सटाईल से, ५०००० करोड़ ज्वेलरी से सरकार को विदेशी मुद्राएँ प्राप्त हो ही रही है, तो महज दो हजार करोड़ विदेशी मुद्राओं के लिये प्रतिवर्ष २ करोड से ज्यादा पशुओं का कत्ल क्यों ? क्यों नहीं मांस निर्यात पर तत्काल प्रतिबंध लगाकर इस महाहिंसा को रोका जाय ?
सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता बताई है तो भी केन्द्र सरकार द्वारा उसकी उपेक्षा क्यों ? देश के पशुधन को बचाने वाली पांजरापोलों को सब्सीडी देने की बजाय निरीह मूक पशुओं की हिंसा करने वाले उद्योगो को २८ प्रतिशत सब्सीडी दी जाती है ?
२. सेक्स एज्युकेशन :- ८-९-११ वीं कक्षा के बालकों के कोमल मन पर ब्रह्मचर्य की बातो को समझाकर चारित्र संम्पन्न बनाना चाहिये या वासना को भड़काने वाली बातें सिखानी चाहिए ? मूख जगी और नहीं मिला तो झपटेगा, वासना बेफाम बनेगी, बहिन - बेटियों के शील की रक्षा में जोखिम होगी और यौन अपराधों में भयंकर बढोतरी होगी, कृपया पुनर्विचार करें ।
३. मध्याह्न भोजन में मांसाहार :- अभी कुछ समय पहले मानव संसाधन मंत्रालय देश की ९.५ लाख स्कूलों में १२ करोड़ बच्चों को अंडा मछली देने का आदेश निकाला है, जो कि देश की अहिंसा भावना को आघात करनेवाला हैं । यदि प्रोटीन ही देना है तो सरकारी गेजेट हेल्थ बुलेटिन २३ में स्पष्ट लिखा है कि मूंगफली - चने आदि कठोल में मछली - मांस - अंडे से ज्यादा प्रोटीन है । इन १२ करोड़ बालकों में ५५ प्रतिशत से अधिक तो शाकाहारी हैं, क्या यह उन्हें जबरन मांसाहारी बनाने की साजिश है ? इस देश की अहिंसा संस्कृति का यह क्रूर मजाक है ।
४. महाराष्ट्र सरकार का १३-१५ लॉकमीशन :- सरकार ने चेरिटेबल ट्रस्टों का त्रीस प्रतिशत टेक्स जाहिर कर अनेक परोपकारी संस्थाओं को पंगु बनाई है । उदाहरण के तौर परनूक पशुओं के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाली अनेक पांजरापोल आदि संस्थाएँ
बचाओ ... बचाओ... !!
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