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१५ लॉ कमीशन में अनेक धार्मिक संस्थाओं के स्वातंत्र्य हनन की हमें बू आ रही है । ऐसे विचित्र निर्मयों से जनसेवा एवं प्रभु सेवा करनेवाले अनेक संस्थाओं की हालत खराब हो जाती
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५.
संथारा को आत्महत्या :- भारतीय संस्कृति में देह की आसक्ति को तोड़ने के लिए स्वेच्छा से संथारा समाधि करने वाले लाखों साधक को चुके हैं । ऐसी पवित्र धार्मिक विधि को आत्महत्या की संज्ञा देना धार्मिक स्वातंत्र्य मे हस्तक्षेप है । ६. अन्ध श्रद्धा निर्मूलन कानून :- महाराष्ट्र में इस कानून के अन्दर कुछ ऐसी विचित्र कलमें दीखिल की जा रही है जो हर धर्म और संस्कृति प्रेमी के लिए आघातजनक है । क्या विज्ञान अधूरा नहीं है ? धर्म के हर तत्त्व को विज्ञान की कसौटी पर परखना क्या उचित है ? आत्मा परमात्मा - मोक्ष आदि शाश्वत तत्व क्या विज्ञान से पकड़े जा सकते हैं । क्या एक इंच की फुट पट्टी से अनंत आकाश को नापा जा सकता है ? क्या चम्मच से दरिया के पानी को खाली किया जा सकता है ? ७. बेकर्स एक्ट :- इस कानून के तहत दान धर्म को नाम शेष करने की साजिश चल रही है । क्या त्यागी - विरागी साधु भिक्षा के लिए लाईसेंस लेकर घूमेंगे ?
८. इन्दिरा गाँधी खुला विश्वविद्यालय ने इग्नू द्वारा मीट टेक्नोलॉजी के अन्तर्गत एक वर्षीय पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है, जिसमें पशु को मारने की विधाएँ सीखाई जाएगी और डिग्रीयाँ बाँटी जाएगी । अहिंसक देश में यदि जीवों को कैसे बचाना यह सीखाने बजाय हिंसा सीखाई जाती है तो क्या देश की गरिमा अक्षुण्ण रह पाएगी ? सोचें ।
९. रात्रि में दस बजे के बाद प्रसारण मंत्री श्री पी. रंजनदास मुशी द्वारा वयस्क चलचित्रो को दिखाने की पैरवी की जा रही है । क्या यह उचित है ? क्या यह भावी पीढ़ी का बरबाद करने की तैयारी तो नहीं ?
१०. नील गाय हत्या :- गुजरात सरकार ने गौ वंश हत्या प्रतिबन्ध लाकर अहिंसावादियों में खुशी की लहर पैदा की, मगर दूसरी ओर नील गाय हत्या के लाईसेंस बाँटने की बात छेड़कर भयंकर भयंकर आघात पहुँचाया है । क्या जीवों को मारना यही एक विकल्प है ? क्यों नहीं अहिंसक विकल्प अपनाया जाय ? जिससे साँप भी न मरे और लाठी भी न टूटे ।
११. तीर्थों को पर्यटन स्थल में परिवर्तित करने का मंसूबा - तीर्थ पवित्रता का पूंज है, आत्मसाधना की पवित्र भूमि है । उसे पर्यटन स्थल बनाना ऐरावत हाथी को गर्दभ
बचाओ ... बचाओ... !!
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