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कुंवारी माताएं तो लोकलज्जा से गर्भपात कराती है, उससे कहीं अधिक तादाद में विवाहित माताएं कायदे की पूंछ का सहारा लेकर बेरहमी और बेशरमी से भरे बाजार में अपने बालकों की हत्या करवाती है । बच्चे नहीं चाहिए तो क्यों की शादी ? मजे के लिए ? तो क्यों नहीं रखा संयम ? क्यों नहीं अपनी वासना को काबू में रखा ? गुनाह अपना, भूल अपनी और सजा उस बेचारे असहाय बालक को ? नहीं सहेगी कुदरत इन अत्याचारों को ! कुदरत को ये बातें बिल्कुल मंजुर नहीं है ।
गर्भाशय से अकाल में ही निकाल कर दफनाये जाने वाले इन असहाय बच्चों के मुंह में ज़बान होती और यदि इन्हें कोर्ट में केस करने का हक होता, वकीलों की सहायता मिलती तो शायद इन हत्यारे माँ-बापों को फांसी पर चढने की नौबत आती । हाँ... हाँ... सुप्रीम कोर्ट तो क्या, राष्ट्रपति के द्वार खटखटाते तो भी छूट नहीं सकते...! भूल अपनी और सजा एक छोटे से असहाय बालक को ...? अरे...! इन बेचारों का बेरहमी से कचूमर निकलवाना ... गैस चेम्बर में लोगों को जिन्दे मारने वाले हिटलर की बेरहमी को भी मात देने वाला है ! ओ शौकीन लैला-मजनूओ ! याद रखना, कर्म तुम्हें नहीं छोड़ेगा.... परमाधामी तुम्हें नहीं छोड़ेंगे ।
अरे ! कुछ तो सोचो और कुछ तो समझो... यदि आपके अपने ही माँ-बाप ने यदि यह सितम आप पर गुजारा होता तो... ? सच कहता हूं आप उन्हें कभी माफ नहीं करते...!
समस्या: अनिच्छित बालकों की
गर्भ - निवारण करने में राष्ट्र की सेवा माननेवालों का तर्क है कि अनिच्छित बच्चे को जीने के लिए मजबूर करना पड़े उससे बेहतर है कि उसको मार डाला जाय । इस तर्क को यदि स्वीकार कर ले तब तो अनिच्छित पत्नी को जो नराधम जला डालते हैं। वे भी राष्ट्रीय सेवक गिने जायेंगे उनको भी इनामी तमगे दिये जाय ! फिर तो अंधे, लूले लंगडे, बहरे, मंद - बुद्धिवाले बालक, डीस्लेक्षिया के रोगी; हर तरह के केन्सर, टी.बी.; एडस् के रोगी और आगे बढ़कर बोझ रूप बने हुए बुड्ढे माँ-बाप इन सभी को बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का हल निकालने के लिए जहर का इंजेक्शन देकर मारने का कायदा और कानून बना सकेंगे। यह तो भाई पब्लिक है, लोकशाही है ! और उसमें बहुमत को अच्छा लगे वैसी बात को कायदा और कानून का प्रारूप देते कौन किसको रोक सकता है ? सत्ता स्थान पर बैठने वालों को भी बहुमत लाना पड़ता है
बचाओ... बचाओ... !!
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