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मिशन में शामिल संपूर्ण मिशनरी की प्रशंसा भी करती है... इज्जत करती है...!
प्रचार- जाल 'बोले उसके बेर बिके' विज्ञापन के इस विषम युग में सरकार लोगों को फंसाने के लिए सूत्रों की रचना करती है 'प्रसूति निवारण - हर स्त्री का अधिकार है । 'इस सूत्र को पढ़कर कोई भोली-भाली बिन अनुभवी महिला कुटुम्ब कल्याण केन्द्र में सलाह लेने जाती है तब उसको गर्भपात की सलाह दी जाती है । सलाह देने स्वयं अथवा उससे मिली भगत रखनेवाला होता है जो स्त्रियों को फुसला-समझा कर गर्भपात करने के लिए तैयार करने में एक्सपर्ट होता है। वे लोग सगर्भा स्त्री को कई प्रकार से समझाते हैं कि आपको बच्चे की जरूरत नहीं है । आपका यौवन, आपका सौन्दर्य, आपकी देहयष्टि यदि सौष्ठवपूर्ण रखनी हो तो गर्भपात करा दीजिए । आपको नौकरी करनी है, अपने पति को आप कंपनी देना चाहती है आपको विदेश जाना है, आपको मजा, जीवन का लखलूट आनन्द लूटना है... तो बच्चे बाधक बनेंगे । 'पहला बच्चा अभी नहीं... दूसरा बच्चा जल्दी नहीं... तीसरा बच्चा कभी नहीं' पांच दस वर्ष रुक जाओ । अभी गर्भपात करवा दो । अभी एबोर्शन कायदे - कानून की दृष्टि से भी मान्य है। उसमें कोई दिक्कत नहीं, कुछ तकलीफ भी नहीं होती | नौकरी करती हो तो बिना वेतन कटौती छुट्टी मिलती है । ओ... हो... और तो और घर में सो जाओ... आराम करो... हलुवा - पूडी खाओ और फिर तरोताजा बनकर, अप-टु-डेट होकर घूम-फिर सकती हो । एक बार भूल की तो दूसरी बार ध्यान रखना लेकिन इस बार तो फैसला कर - कराकर चलो छुट्टी !
इतना समझाने पर भी यदि धर्मप्रेमी, पाप भीरु भारतीय स्त्री हजारों वर्षों के चले आये संस्कारों के कारण गर्भपात जैसा भयंकर पाप करते हुए ननु नच करके हिचकिचाती हो तब उसको समझाया जाता है कि अभी तो शुरुआत है, स्टाटिंग है; उसमें जीव नहीं होता । वह तो माँस का टुकड़ा है । उसको निकाल कर फेंक देने में कोई पाप नहीं लगता, ज्यादा दर्द जैसी भी बात नहीं । एक सप्ताह में तो खड़े होकर दौड़ने लगोगी... (कान में धीरे से) 'अरे... किसी को पता भी नहीं चलेगा...'
और वह भोली भाली अबला नारी उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों को सुनकर, उनके चंगुल में फंस जाती है । उनका प्रचार - जाल और भी दृढता से अपने विकराल शैतानी पंजों में उसको जकड़ लेता है और एक न एक दिन वे शैतान के बच्चे उसको आ
बचाओ... बचाओ...!!
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