Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 4
________________ भावों की व्युच्छित्ति दर्शायी गयी है। 6 भावों की व्युच्छित्ति किस प्रकार संभव है यह विचारणीय है। .माथा 64 में भावस्त्री में सरागचारित्र और क्षायिक सम्यक्त्व का निषेध आपत्तिजनक है। ..क्रोध, मान, माया की संदृष्टि में सद्भाव स्वरूप 40 भाव वर्णित किये गये हैं जबकि वहाँ पर 41 भावों का सद्भाव पाया जाता है। भव्य मार्गणा में सभी भावो का सद्भाव गाथा 107 में बतलाया है। जबकि वहाँ पर अभव्य भाव कैसे संभव यह विचारणीय है ? तथा ठीक उसी प्रकार अभव्य में मिथ्यादर्शन गुणस्थान में 34 भावों का सद्भाव स्वीकार किया है जबकि यहाँ भव्यत्व भावको कम करके 33 भाव ही संभव हैं। C . मार्ग के उनकारक दृष्टि में 1, 2, :, : चार गुणस्थान स्वीकार किये हैं जबकि वहाँ 1, 2, 4, 13, 14, इन पाँच गुणस्थानों का सद्भाव पाया जाता है। ___ इस ग्रन्थ पर कार्य करना गुरुओं की कृपासेसंभव होसका है । पूजनीया आर्यिका श्री दृढ़मती जी सिद्धान्तज्ञ, सरल, उदार होने के साथ-साथ अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी है। आपके जीवन का प्रत्येक क्षण श्रुताराधना में व्यतीत होता है। आपके आशीष से हमलोग भी यही कामना करते हैं कि हम लोगों का समय भी श्रुताराधना में व्यतीत हो। इस ग्रन्थ के संपादन कार्य में वर्णी गुरुकुल के संचालक श्री ब्र. जिनेश जी का अत्यधिक सहयोग रहा है। जब जिससामग्री की आवश्यकता पड़ी वह समय पर प्राप्त हो गई। हम दोनों आपका अत्यधिक आभार व्यक्त करते हैं। __ आशा है कि विद्वत्जन के साथ-साथ सामान्य जन लोग इस कृति से लाभ प्राप्त कर सकेंगे। विजय दशमी ब्र. विनोद जैन 20.10.99 ब्र. अनिल जैनPage Navigation
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