Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya Author(s): Amityashsuri Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth View full book textPage 6
________________ गहन सागर में अवगाहना कर शासन रुप नगर में ज्ञान रुप सरोवर से आध्यात्मिक मौक्तिक के आनंद लूटने वाले भव्य जीव रुप राजहंस के लिए चरणकरणानुयोग रुप तीन भाष्य की रचना कर भेंट दी है । जो कि चार अनुयोग में द्रव्यानुयोग का महत्त्व बहुत है। ओघ नियुक्ति (भा.गा.७) में 'दविए दंसण शुध्धि' द्रव्यानुयोग से दर्शन शुध्धि होती है क्योंकि उनके द्वारा युक्तिपूर्वक यथावस्थित अर्थ का ज्ञान होता है । ओघ नियुक्ति (भाष्य गाथा-११) में अक्षर एवं अर्थ के अल्प बहुत्व का आश्रय कर चत्तुभंगी बताई है, अक्षर कम अर्थ बहुत वह है चरण करणानुयोग ओघ नियुक्ति वगेरह, अक्षर बहुत अर्थ बहुत अर्थ कम वह है धर्म कथानुयोग ज्ञाता धर्म कथादि अक्षर बहुत अर्थ बहुत वह है द्रव्यानुयोग दृष्टिवाद वगेरे, अक्षर कम अर्थभी कम वह है गणितानुयोग ज्योतिषकांड विगेरे ऐसे चार अनुयोग में से चरणकरणानुयोग रुप तीन भाष्य की रचना में प्रथम चैत्यवंदन भाष्य में जिन मंदिर में प्रवेश की विधि, ८४ आशातना, जिनेश्वर के चार निक्षेप, ३ मुद्रा, पांच अभिगम, तीन प्रकार के वंदन, नवकारादि सूत्र के अक्षर-पद एवं संपदायें काउसग्ग के दोषों, उनका प्रमाण, सात चैत्यवंदन, देववंदन विधि आदि २४ दारों से २०७४ स्थानों से वर्णन किया है । द्वितीय गुरूवंदन भाष्य में गुरूवंदन के प्रकार, वंदनीय अवंदनीय की समझ, द्रव्यभाव वंदन में शीतलाचार्यादि के दृष्टांत, वंदन कब करना, वंदन के निमित्त, मुहपत्ति की ओर शरीर की पडिलेहणा, ३२ दोष रहित वंदन, उनका फल, वंदन से उत्पन्न होनेवाले ६ गुण. गुरू की स्थापना किस में करना, अवग्रह गुरू की तेंतीस आशातना, सुबह शाम की संक्षिप्त वंदन विधि आदि का सुचारु रुप से वर्णन किया है ।। तृतीय पच्चवखाण भाष्य में दश प्रकार के पच्चवखाण, दश प्रकार के काल पच्चक्खाण, उच्चारविधि, उसका भेद, चार प्रकार के आहार, विगइयें, उनके ३३ भेद, ६ भक्ष्य, ४ अभक्ष्य, महाविगइ, ३० निवियातें, पच्चवखाण के भांगे, उनकी शुध्धि और इहलोक एवं परलोक के फल को दिखाते धम्मिलकुमार एवं दामन्त्रक विगेरे दृष्टांत के साथ उपकारक बनें वैसा उमदा भाव से वर्णन किया है। अत: भाष्य त्रयम् नामक यह पुस्तक द्वारा ज्ञान प्राप्त कर शुध्ध क्रिया विधि का आचरण कर आत्मश्रेय की साधना में आगे बढकर मनुष्य जन्म का फल मोक्ष प्राप्त करें यही भावना है। अंतर में उछलती उर्मि के साथ :महावीर जन्म कल्याणक दक्षिण केसरी आचार्य भगवंत चैत्र शुक्ला १३, शनिवार श्रीमद् विजय स्थूलभद्रसूरि पदांबुज दिनांक -11-४-२००७ भ्रमर शिशु कल्पयशसूरि का धर्मलाभ | वीर संवत 2 ___ IV -Page Navigation
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