Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 5
________________ ज्ञान आँख - विधि पाँख अनादि काल से आत्मा प्रमाद की पथारी में पोटकर भौतिक (पर) पदार्थों के पीछे अनंत-अनंत कर्मो की रज से गंदा बनता जा रहा है। - अब पुण्योदय का सूर्योदय हआ है अत: जैन शासन रुप नगर में प्रवेश मिला है। केवल प्रवेश मिलने पर कार्य निष्पन्न नहीं होता अत: जागृत होना पडेगा, सम्यगदर्शन यही जागृत दशा है, मिथ्यादर्शन निद्रित अवस्था है यानि एक है सभान-विवेक पूर्ण अवस्था, दूसरी है गुमराह-अविवेक भरी अवस्था । - जागृत अवस्था वाला आत्मा शाश्वत शुध्धि के लिए तडपता है अजागृत आत्मा विनश्वर देह शुधि के लिए चिंतित रहता है, अत: देह शुध्धि के लिए पानी जरुरी है, देह तृप्ति के लिए बाह्य पदार्थ जरुरी है वैसे आत्म शुध्धि के लिए धर्म वाणी रुप पाणी की जरुरत है आत्म तृप्ति के लिए तप, त्याग, व्रत, नियम आदि की जरुरत है जहाँ आत्मा को परम शान्ति की अनुभूति होती है। जीवन जीने के लिए पानी की जितनी आवश्यकता है इससे भी ज्यादा जिनवाणी का. श्रवण और वितराग परमात्मा ने दिखाया हुआ मार्ग पर चलना आवश्यक है । - पानी के लिए कुए, सरोवर, तालाब के प्रति झुकना पडता है वैसे सम्यकज्ञान रुप पाणी के लिए विनय, विवेक, नम्रता, समतादि गुणों को आत्मसात करना जरुरी बनता है ऐसी गुणावली मुक्ति तक पहुंचाती है। .. आँख और पाँख से पक्षी उड पाता है । मानव तैरने के ज्ञान मात्र से नहीं किन्तु हाथ पांव हिलाने की क्रिया से किनारा प्राप्त कर सकता है, मिठाई का थाल आँख देख सकती है लेकिन हाथ से मुंह में रखने से, दांतों से चबाने की क्रिया से जीभ स्वाद ले पाती है पेट तृप्ति का अनुभव करता आंतर वैभव को पाने के लिये सिर्फ ज्ञान से नहीं चलता इन के लिये क्रिया भी चाहिये आँख है लेकिन गति नही तो स्थान पर पहुंचना अशक्य है, आंख स्थान दिखाती है पाव (गति) लक्ष सिध्ध करने में सहायक बनता है । धरती और आकाश का विराट अंतर काटने के लिये ज्ञान और क्रिया का मिलन चाहिये सम्यग्ज्ञान मोक्ष दिखाता है क्रिया वहां पहुंचाती है। ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः। यही उक्ति के अनुसार आयंबिल तप के घोर तपस्वी सम्राट् महाज्ञानी और जिनका चित्तौड के राणा ने तपा का बिरुद देकर स्वागत किया था, ऐसे निष्पहि तपोनिधि जगतचन्द्रसूरीश्वरजी के प्रकांड विद्धान कर्मग्रंथादि गहन विषयों के कर्ता प.पू.आ. भ. देवेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग एवं कथानुयोग के _III )

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