Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 6
________________ २२४ २३ लल्लभाटकृत सिधराय जेसिंगदे कवित्त -संपाद की य२४ गुणाढ्य कविनी बृहत्कथानो आदिश्लोक -संपाद की य२५ आजडे करेली प्राकृत भाषानी व्याख्या -संपाद की य२६ चित्रपरिचय-संपाद की य २२८ २३१ २ ३ ३ अनु पूर्ति १ सिद्धसेन दिवाकरकृत वेदवाद द्वात्रिंशिका विवेचक - अध्यापक पं. श्रीसुखलालजी २ श्रीवहादुरसिंहजी सिंघीके साथके मेरे पुण्य सरण -संपाद की य- श्रीसिंघीजीके कुछ संस्मरण ले०- श्रीयुत पं. सुखलालजी संघवी अशुद्धि संशोधन प्रस्तुत अङ्कमें, श्रीयुत पं. नाथूरामजी प्रेमी लिखित 'तत्त्वार्थ सूत्रकार उमाखाति' विषयक जो लेख प्रकाशित हुआ है उसके पृष्ठ. १३४ पर प्रुफ संशोधनकी गलतीसे कुछ अशुद्धि छप गई है, पाठक उसका इस प्रकार संशोधन कर लें। पंक्ति १८ में 'क्यों कि उन्होंने की जगह 'उनके गुरुने' . , २० ,, "उनके गुरु वीरसेनाचार्यने तो' ये शब्द निकाल दें। , २२ ,, 'अपनी जयधवला' की जगह अपनी दूसरी कृति जयधवलामें' * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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