Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 178
________________ राजू ऊंचा, सात राजू मोटा है। नीचे सात राजू चौड़ा व ऊपर एक राजू प्रमाण चौड़ा है। उसमें ऊपर से लेकर नीचे तक क्रमवार रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा व महातमप्रभा नाम की सात पृथ्वियां हैं जो लगभग एक एक राजू के अन्तराल से स्थित हैं। इस एक एक राजू में कुछ पृथ्वी की मोटाई और कुछ वातवलय तथा आकाश सम्मिलित हैं। सातवीं पृथ्वी के नीचे एक राजू प्रमाण क्षेत्र खाली है, जो केवल निगोद जीवों से भरा हुआ है। रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग हैं, खरभाग, पंकभाग और अब्बहुल भाग। प्रथम दो भागों में भवनवासी और व्यंतर देव, तीसरे भाग अब्बहुल तथा शेष छः पृथ्वियों में नारकी जीव निवास करते हैं। पाप के उदय से जीव नरक गति में उत्पन्न होता है तथा ताड़न मारण, छेदन भेदन आदि नाना प्रकार के भयानक दुखों को भोगता है। भैया भगवतीदास ने इन पृथ्वियों के क्षेत्रफल का पृथक-पृथक संकेत किया हैं "पहिली रतन प्रभा ते जान। दशराजू तिह कही बखान।। दूजी शोलह राजू कही। तीजी नरक बीस है लही।। चौथी नरक अठाइस राजू। तिह निकरयो जिय सारे काजु।। पंचमि नरक राजू चौतीश। छटटी चालिस कही जगदीश।। नरक सातवीं की मरजाद। कही छियालिस कथन अनाद।।" अर्थात् प्रथम पृथ्वी रत्नप्रभा का क्षेत्रफल दश घन राजू, दूसरी का सोलह घन राजू, तीसरी का बाईस घन राजू, चौथी पृथ्वी का अट्ठाईस घन राजू, पांचवी का चौतीस घन राजू, षष्ठ पृथ्वी का चालीस घन राजू तथा सप्तम पृथ्वी का छियालिस घन राजू है। इस सब का योग एक सौं छियानवें आता है। कविवर भैया भगवतीदास ने भी पूरे अधोलोक, जिसमें सातों नरक हैं का क्षेत्रफल एक सौ छियानवें ही बताया है "सात नरक की गिनती जान। शतइक और छयानवें मान।।" तिलोयपणत्ति में इस तथ्य को गणित के द्वारा सिद्ध किया गया है। लोक (343) से चार गुने को सात का भाग देने पर अधोलोक का घनफल निकल आता है 343 x 4 7 = 196. इन पृथ्वियों में 49 पटल हैं जिनमें अत्यंत विशाल कूपवत बिल होते हैं जिनमें नारकी जीव निवास करते हैं। (156) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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