Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 223
________________ पहुँचने को चौदह श्रेणियों में विभक्त किया है, इनको गुणस्थान की संज्ञा दी है। -श्री रतनलाल जैन, जैन धर्म, पृ0 सं0 108, 30. "जैन" वह आत्मा है जो 'जयति' कर्मशत्रून् इति जिनः' के अनुसार कर्म शत्रुओं के जीतने वाले देव को या परमात्मा को अपना उपास्य या आराध्य माने।" -श्री हीरा लाल पांडे, 'जैन धर्म और कर्म सिद्धान्त', श्री तनसुख राय स्मृति ग्रंथ, पृ0 सं0 374 31. प्रो0 महेन्द्र कुमार जैन न्यायाचार्य, जैन दर्शन, पृ0 सं0 171 32. पं0 चैनसुखदास न्यायतीर्थ, 'जैन धर्म का आत्म तत्व और कर्म सिद्धान्त', महावीर जयन्ती स्मारिका, अप्रैल 1964 पृ0 सं0 125 से उद्धृत। 33. पूरण-गलन धर्माणः पुद्गलः जैन-लक्षणावली, द्वितीय भाग, पृ0 सं0 712 से उद्धृत। तथा 35. न्याय वैशेषिक जिस द्रव्य को भौतिक तत्व और वैज्ञानिक जिसे मैटर (Mater) कहते है।, उसी को जैन दर्शन में पुद्गल की संज्ञा दी गई है।" - श्री प्रेमकुमार अग्रवाल, जैन एवं न्याय दर्शन में कर्म-सिद्धान्त, श्रमण, नवम्बर 1972 पृ0 सं0 16 से उद्धृत। 34. भैया भगवतीदास, ईश्वर निर्णय पचीसी, छं0 सं0 23 आचार्य उमास्वाति, तत्वार्थ सूत्र, 6, 1, 2 36. 'आत्मा और कर्मों का संयोग सम्बंध है इसे ही जैन परिभाषा में एक क्षेत्रागाह सम्बंध कहते हैं। - पंडित चैन सुखदास न्यायतीर्थ, 'जैनधर्म का आत्म तत्व और कर्म सिद्धान्त', महावीर जयन्ती स्मारिका, अप्रैल 1964 ई। - भैया भगवतीदास, पुण्यपचीसिका, छं0 सं0 19 भैया भगवतीदास, अक्षरबत्तीसिका, छं0 सं0 13 39. भैया भगवतीदास, रागादिनिर्णयाष्टक, छं0 सं0 5, 6 40. भैया भगवतीदास, बारह भावना, छं0 सं0 9, 10 41. आचार्य उमास्वाति, तत्वार्थ सूत्र, 9, 2, 3. भैया भगवतीदास, अष्टकर्म की चौपाई, छं0 सं0 25 43. प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंसटीन का 20वी शताब्दी का महत्वपूर्ण आविष्कार, सापेक्षवाद का सिद्धान्त (Theory of Relativity) 42. (201) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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