Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 224
________________ 44. परमागमस्य बीज निषिद्ध जात्यंध सिंधुर विधानं। सफल नय विलसितानां विरोध मंथनं नमाम्यनेकान्तं। अर्थात् मैं (अमृतचन्द आचार्य) उस अनेकान्त को नमस्कार करता हूँ जो परमागम का बीज है जिसने जन्मांध व्यक्तियों के हाथी के एक अंश को पूर्ण हाथी मानने के भ्रम को दूर कर दिया है, तथा जो वस्तु निरूपण सम्बन्धी विरोधों को दूर करता है। -श्री अमृत चन्द्र आचार्य, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, छंद सं0 2। कविवर दिनकर, अनेकान्त या अहिंसावाद, आगमपथ, निर्वाण रजतशती अंक, पृ0 सं0 6 पं0 दौलतराम-छहढाला, 3 सरी ढाल छंद सं0 2 'दंसण मूलो धम्मो, आचार्य कुन्दकुन्द, दंसणपाहुड़ गाथा, 2 भैया भगवतीदास, जिनधर्म पचीसिका, छं0 सं0 14 49. भैया भगवतीदास, मूढाष्टक, छंद सं0 2 50. भैया भगवतीदास, शत अष्टोत्तरी, छंद सं0 38 51. भैया भगवतीदास, मिथ्यात्व विध्वंसन चतुर्दशी, छंद सं0 12 भैया भगवतीदास, शत अष्टोत्तरी, छंद सं0 46, 90 53. भैया भगवतीदास, चतुर्दशी, छंद सं0 10 54. भैया भगवतीदास, पुण्य पाप जग मूल पचीसी, छंद सं09 55. भैया भगवतीदास, सुबुद्धि चौबीसी, छंद सं0 10 56. भैया भगवतीदास, सुपंथ कुपंथ पचीसिका, छंद सं0 5, 21 57. भैया भगवतीदास, पुण्य पचीसिका, छंद सं0 23 भैया भगवतीदास, अनित्य पचीसिका, छंद सं0 3 59. भैया भगवतीदास, द्रव्य संग्रह मूल सहित कवित्त बंध, छंद सं0 45 भैया भगवतीदास, पुण्य पचीसिका, छंद सं0 10 61. भैया भगवतीदास, उपादान-निमित्त-संवाद, छ) सं0 61 आचार्य उमास्वाति, तत्वार्थसूत्र, 5, 21 पं0 दौलतराम, स्तुति, जैन पूजा संग्रह, पृ0 सं0 310 से उद्धृत। 64. कविवर बनारसीदास, उपादान निमित्त दोहा, मूल में भूल, पृ0 सं0 124 से उद्धृत 65. श्री कानजी स्वामी के प्रवचन, मूल में भूल, पृ0 सं0 115, 133 (202) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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