Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 217
________________ अपेक्षा व्यावहारिक दृष्टि से ही अधिक विचार किया है। उपादान निमित्त विचार उपादान निमित्त विचारधारा नितान्त जैन दर्शन के क्षेत्र का विषय है। बहुत समय से यह विवाद चला आता रहा है कि उपादान और निमित्त इन दोनों में से कौन अधिक महत्वपूर्ण है। उपादान दो शब्दों से मिलकर बना है उप-समीप और आदान-ग्रहण होना। अर्थात् जिस पदार्थ के समीप में से कार्य का ग्रहण हो वह उपादान है और उस समय जो परपदार्थ अनुकूल उपस्थित हों सो निमित्त है। भैया भगवतीदास ने इस विषय पर एक पृथक और विशिष्ट कृति की रचना की है 'उपादान निमित्त संवाद' जिसमें उपादान और निमित्त दो पात्रों के रूप में परस्पर वाद विवाद करते हैं, एक दूसरे के तर्कों का खंडन करते हैं। आत्मा की निज की शक्ति उपादान है और पर संयोग निमित्त है। डॉ0 हुकुमचन्द भारिल्ल के अनुसार जो स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उसे उपादान कारण कहते हैं। जो स्वयं कार्यरूप परिणमित न हो, परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप जिस पर आ सके उसे निमित्त कारण कहते हैं। घट रूप कार्य का मिट्टी उपादान कारण है और चक्र, दंड एवं कुम्हार निमित्त कारण है।' इन दोनों का सम्बन्ध अनादि काल से चला आ रहा है; कविवर 'भैया' जी के शब्दों में "उपादान निज शक्ति हैं जिय को मूल स्वभाव। है निमित्त परयोग तें बन्यो अनादि बनाव।।" निमित्त का तर्क है कि सारा संसार इसी बात को जानता है कि गुरु उपदेश के बिना जीव, मोक्ष के मार्ग पर नहीं चल सकता है। देव, गुरु, शास्त्र अथवा जिनेन्द्र भगवान का निमित्त पाकर ही जीव इस भव सागर को पार कर पाता है "निमित्त कहैं मोको सवै जानत हैं सब लोय। तेरो नाव न जानहीं, उपादान को होय।। देव जिनेश्वर गुरु यती, अरु जिन आगम सार। इहि निमित्त तें जीव सब, पावत हैं भव पार।।" निमित्त के प्रथम तर्क का खंडन उपादान इस प्रकार करता है 'मोको जाने जीव वे जो हैं सम्यकवान।' निमित्त को संसार जानता है किन्तु उपादान को विद्वान और सम्यग्ज्ञानी जीव जानते है। जैसे हीरे के पारखी केवल जौहरी (195) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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