Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 218
________________ ही होते हैं और कोयले को सारा संसार जानता है किन्तु केवल इसलिए कोयला हीरे की अपेक्षा मूल्यवान नहीं हो जाता और उपादान निमित्त के दूसरे तर्क का भी निपुणता से खंडन कर देता है "यह निमित्त इह जीव को, मिल्यो अनन्ती बार। उपादान पलट्यो नहीं, तौ भटक्यों संसार।।" अर्थात् सच्चे ज्ञानी गुरु देव और शास्त्रों का समागम जीव को अनन्त बार हुआ किन्तु उसने अपने स्वरूप को नहीं समझा न ही विकसित किया अत: संसार में भटकता रहा। इसीलिए उपादान की अपनी शक्ति ही प्रमुख है, यदि उसमें अपनी शक्ति है तब तो बाहय संयोगों से सहायता मिल सकती है, यदि निज की शक्ति ही नहीं है तब कितने ही निमित्त संयोगों के द्वारा भी कार्य नहीं हो सकता। किन्तु निमित्त भी तर्क में पर्याप्त निपुण है, कहता है कि भव्य जीवों को जो क्षायिक सम्यक्त्व (स्थायी रूप से सम्यक् ज्ञान जिसे एक बार प्राप्त कर लेने पर कभी न कभी मोक्ष प्राप्त अवश्य होगा) होता है वह केवल ज्ञानी अथवा साधु मुनि के सम्पर्क में ही होता है, अतः मुक्ति के लिए निमित्त आवश्यक सिद्ध हुआ। "कै केवलि कै साधु के, निकट भव्य जो होय, सो क्षायक सम्यक् लहै, यह निमित्त बल जोय।।" इतना कहते ही उपादान की सूक्ष्म दृष्टि निमित्त के तर्क की दुर्बलता को तत्काल ही पकड़ लेती है, वह कहता है कि भव्य (जो कभी न कभी मोक्ष पायेगा) जीव हो तो वह क्षायिक सम्यक्त्व ग्रहण कर लेता है अर्थात् प्रत्येक सामान्य जीव इसे ग्रहण नहीं करता अतः यहाँ उपादान की निज की शक्ति तो स्वतः ही महत्वपूर्ण सिद्ध हो गई कि जिनमें निज की शक्ति विद्यमान है वे ही केवली अथवा साधु के सम्पर्क में क्षायिक सम्यक्त्व ग्रहण कर पाते हैं "केवलि अरू मुनिराज के पास रहे बहु लोय। पै जाको सुलट्यो धनी क्षायिक ताकों होय।।" भगवान के समवसरण में इतने प्राणी जाते हैं किन्तु जिनका धनी अर्थात् आत्मा सुलटा हुआ है वही क्षायिक सम्यक्त्व को ग्रहण करता है अर्थात् ग्रहण करने वाला तो उपादान ही है। अब निमित्त अन्य प्रकार से तर्क उपस्थित करता है- कि मनुष्य शरीर के बिना जीव की मुक्ति नहीं होती, तब निमित्त की महत्ता है। किन्तु इस तर्क का भी खंडन कर दिया जाता है। मुक्ति तो (196) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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