Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
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नाम बताकर उनमें रहने वाले जीवों की संख्या संकेत पर ही केन्द्रित रही है। दोनों ही रचनाओं में कवि ने मानसिक भावों के उतार-चढ़ाव और परिवर्तन का सूक्ष्मता से चित्रण नहीं किया है जबकि जैन दर्शन ग्रन्थों में इसका विस्तृत
और सूक्ष्म विवेचन उपलब्ध है। जैन दर्शन ग्रंथ गोम्मटसार में इसका विशद विवेचन किया गया है और कवि ने स्वयं भी रचना (प्रथम) के अन्त में उसका उल्लेख किया है। कवि ने प्रथम रचना में सर्वप्रथम उन सिद्ध भगवान की वंदना की है जो कर्म रूपी कलंक को शनैः शनैः धोकर सिद्ध पद को प्राप्त किए हुए हैं। कवि को यहाँ उसी पंथ का दिशा-निर्देश करना है।
प्रथम गुण स्थान है मिथ्यात्व। संसार के अधिकतर जीव इसी गुणस्थान में रहते हैं। ये लोग आत्मस्वरूप से अनभिज्ञ मिथ्यामति जीव होते हैं देव और कदेव में उनके लिए कोई अन्तर नहीं होता, दोनों की समान रूप से सेवा करते हैं। कवि ने अपनी दूसरी रचना चौदह गुणस्थान जीव संख्या वर्णन में प्रथम गुणस्थान का कुछ विस्तृत वर्णन किया है, वे कहते हैं
"देव कुदेव न जाने भेव। सुगुरू कगरू को एक ही सेव।। नमै भगति सो बिना विवेक। विनय मिथ्याती जीव अनेक।"
जैसा कि आरम्भ में ही बताया है इस रचना में कवि की दृष्टि विभिन्न गुणस्थानों में निवास करने वाले जीवों की संख्या बताने पर ही केन्द्रित रही है। कवि के अनुसार इस गुणस्थान में अनन्तानंत जीव भरे हुए हैं
"प्रथम मिथ्यात्व नाम गुणस्थान। जीव अनंतानंत प्रमान।।"
दूसरा गुणस्थान है 'सासादन सम्यग्दृष्टि'। जब जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है किन्तु किसी कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) के तीव्र हो जाने से सम्यग्दर्शन से च्युत होकर मिथ्यात्व की ओर गिरने लगता है तो दोनों के बीच का स्थान सासादन सम्यग्दृष्टि है। कवि ने इस गुणस्थान के विषय में केवल इतना ही कहा है कि यहाँ (सासादन) से गिरकर जीव मिथ्यात्व में ही पहुँच जाता है
"अब दूजो सासादन नाम। ताके एक गिरन को धाम।। मिथ्यापुर लों आवै सही। दूजी वाट न याको कहीं।" कवि के अनुसार इस गुणस्थान में बावन करोड़ जीव रहते हैं"सासादन गुणस्थान नाम। बावन कोटि जीव सिंह ठाम।।" तीसरा गुणस्थान है सम्यक् मिथ्यात्व (मिश्र) इसमें सम्यक्त्व और
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