Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 191
________________ मिथ्यात्व दोनों के मिश्रित भाव रहते हैं। चतुर्थ गुणस्थान है असंयत सम्यग्दृष्टि। जिस जीव की श्रद्धा समीचीन होती है वह सम्यग्दृष्टि होता है किन्तु वह संयम का पालन नहीं करता। अत: वह असंयत सम्यग्दृष्टि कहलाता है। भैया भगवतीदास ने इस गुणस्थान का नाम अव्रतपुर दिया है(इसे अविरत सम्यक्त्व भी कहते हैं) और इसके सम्बंध में इतना ही कहा है कि अव्रतपुर से गिरने पर तो प्राणी तीसरे दूसरे से होता हुआ प्रथम मिथ्यात्व तक पहुँच जाता है और ऊपर चढ़ता है तो पंचम और सप्तम तक पहुँच जाता है। "चौथो है अव्रतपुर थान। पंथ पंच भाखे भगवान। गिरै तो तीजै दूजै जाय। मिथ्यापुर लों पहुँचे जाय।। चढ़े तो पंचम सप्तम सही। ऐसी महिमा याकी कही।" कवि के अनुसार इस गुणस्थान में सात अरब जीव बसते हैं"अव्रत है चौथो गुणवंत। सात अरब जिय तहां वसंत।" पाँचवां गुणस्थान है संयतासंयत, जो श्रावक के पंच अणुव्रत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, शील, अपरिग्रह) का पालन करते हैं तथा इन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखते हैं। जैन धर्म में बताया गया गृहस्थ का चरित्र पालन करने वाले सभी मनुष्य इस गुणस्थान के अन्तर्गत आते हैं। हमारे कवि भैया जी ने इस गुणस्थान का नाम 'देशविरतपुर' दिया है (इसे देशविरत भी कहते हैं) और इसके सम्बंध में केवल इतना बताया है "पंचम देशविरतपुर जान। पंथ पंच ताके उर आन।। गिरे तो चौथे तीजे जाय। अथवा दूजै पहिले भाय।। चढ़े तो सप्तमपुर के माहि। इहि थानक अधिक कुछ नाहिं।।" तथा इस गुणस्थान वर्ती जीवों की संख्या तेरह करोड़ है"पंचम देशविरतपुर कहे। तेरह कोटि जीव जहं लहे।।" षष्ठ गुणस्थान है प्रमत्त संयत, जिसमें पूर्ण संयम का पालन करते हुए भी प्रमाद के कारण कभी कभी कुछ असावधानी हो जाती है, ऐसे मुनि प्रमत्त संयत कहलाते हैं। इनके विषय में भी कविवर 'भैया' इतना ही बताकर मौन हो गये हैं कि यहाँ से स्खलित होने पर भी जीव पंचम चतुर्थ आदि से होता हुआ प्रथम गुणस्थान मिथ्यात्व तक पहुँच सकता है तथा उन्नति करने पर सप्तम गुणस्थान में पहुँच जाता है। कवि के अनुसार यहाँ के जीवों की संख्या (169) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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