Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 12
________________ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास 2,9 :09@G :- @@@ 280@@@ @@@ इस ग्रन्थ के लेखक के गुरुवर्य परमयोगीराज मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज 00-00809) :::08@@GEE: @@@@@:: :: 00- : @@@ @DEO :: @@@: @@ श्राप ओशवंशिय रत्नशी नाम के होनहार थे अपने पिता कर्मचन्दजी के साथ किशोरावस्था में स्था० समुदाय में दीक्षा ली १८ वर्षों के पश्चात् आपने संशोधन कर शास्त्र विशारद जैनाचाय विजयधमसूरीश्वरजी महाराज के पास सवेग दीक्षा ली थी। १८ वर्षों तक दीक्षा पा ली अन्त में वि० सं० १९७७ वापि ग्राम में समाधि के साथ स्वर्ग पधारे । 2 @@@ जन्म S:00 स्थान दीक्षा | संवेगपक्षी दीक्षा| स्वर्गवास १६४१ । १६५६ | १९७७ १६३१ 90000000 @@ @@@@23:2@@)©®:00:0@@@@: Jain .. . International For Private & Personal Use Only www.jainelae-resorg

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