Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 6
________________ * * * * *** * * ** *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* -* -*-*-*-*-*- * *-*-*-*-* H H HHHHHHH H HH H १०. उपयोग ११. संज्ञा १२. कषाय १३. इन्द्रिय १४. समुद्घात १५. वेदना १६. वेद १७. आयुष्य १८. अध्यवसाय १६. अनुबंध और २० कायसंवेध। यह सब विषय चौबीस दण्डक से प्रत्येक जीव पद में कहे गये हैं अर्थात् प्रत्येक दण्डक पर ये बीस द्वारा कहे गये हैं। इन बीस द्वारों में से पहला-दूसरा द्वार तो जीव जहाँ उत्पन्न होता है, उस स्थान की अपेक्षा से हैं। तीसरे से उन्नीसवें तक सतरह द्वार, उत्पन्न होने वाले जीव के दस भव सम्बन्धी हैं और बीसवां द्वार दोनों भव सम्बन्धी सम्मिलित है। इस प्रकार चौबीसवें शतक में चौबीस दण्डक सम्बन्धी चौबीस उद्देशक कहे गये हैं। उक्त सात शतक एवं उद्देशकों की विशेष जानकारी के लिए पाठक बंधुओं को इस पुस्तक का पूर्ण रूपेण पारायण करना चाहिये। संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन में आदरणीय श्री जशवंतभाई शाह, मुम्बई निवासी का मुख्य सहयोग रहा है। आप एवं आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबेनशाह की सम्यग्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में गहरी रुचि हैं। आपकी भावना है कि संघ द्वारा प्रकाशित सभी आगम अर्द्ध मूल्य में पाठकों को उपलब्ध हो तदनुसार आप इस योजना के अंतर्गत सहयोग प्रदान करते रहे हैं। अतः संघ आपका आभारी है। आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना, आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, साथ ही आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज़ के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपके पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिह्नों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हों एवं शासन की प्रभावना करते रहें, इसी शुभ भावना के साथ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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