Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 4
________________ निवेदन - सम्पूर्ण जैन आगम साहित्य में भगवती सूत्र विशाल रत्नाकर है, जिसमें विविध रत्न समाये हुए हैं। जिनकी चर्चा प्रश्नोत्तर के माध्यम से इसमें की गई है। प्रस्तुत षष्ठ भाग में अठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस और चौबीस शतक का निरूपण हुआ है। प्रत्येक शतक के कितने उद्देशक हैं और उनकी विषय सामग्री क्या है? इसका संक्षेप में यहाँ वर्णन किया गया है - शतक १८ - अठारहवें शतक में १० उद्देशक हैं - जीवादि के विषय में प्रथम-अप्रथम आदि भावों का प्रतिपादक प्रथम उद्देशक है। विशाखा नगरी में श्रवण भगवान् महावीर पधारे, इस विषयक दूसरा उद्देशक है। माकन्दी पुत्र अनगार की पृच्छा रूप तीसरा उद्देशक है। प्राणातिपातादि पाप और इनकी विरति विषयक चौथा उद्देशक है। असुरकुमार देव की वक्तव्यता का पाँचवाँ उद्देशक है। गुड़ आदि के वर्णादि विषयक छठा उद्देशक है। केवलज्ञानी के विषय में अन्यतीर्थियों के मन्तव्य विषयक सातवाँ उद्देशक है। अनगार-क्रिया सम्बन्धी पृच्छा का आठवाँ उद्देशक है। भविक द्रव्य नैरयिक आदि विषयक नौवां उद्देशक है और सोमिल ब्राह्मण के प्रश्न युक्त दसवाँ उद्देशक है। शतक १६ - उन्नीसवें शतक में १० उद्देशक इस प्रकार हैं - १. लेश्या विषयक प्रथम उद्देशक है। २. गर्भ विषयक दूसरा उद्देशक है। ३. पृथ्वीकायिकादि विषय तीसरा ४. 'महा आस्रव, महाक्रिया' आदि पृच्छा विषयक चौथा ५ चरम (अल्प स्थितिक) विषयक पांचवां ६. द्वीप आदि विषयक छठा ७. भवनादि विषयक सातवां ८. एकेन्द्रिय आदि जीवों की उत्पत्ति विषयक आठवाँ ६. द्रव्यादि करण विषयक नौवाँ और १०. वाणव्यंतरदेव विषयक दसवाँ उद्देशक है। शतक २० - बीसवें शतक में १० उद्देशक हैं - १. बेइन्द्रियादि की वक्तव्यता विषयक प्रथम उद्देशक २. आकाशादि अर्थ विषयक ३. प्राणातिपातादि अर्थ को प्रतिपादन करने वाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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