Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002 Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 3
________________ भगवान इस अवसर्पिणी काल के आदि युग की यह कहानी है। जब मनुष्य की इच्छाएँ कम थीं। सत्य, सदाचारमय, सन्तोषी प्रवृत्ति के कारण सभी मनुष्य सुखी थे, न कोई राजा न कोई प्रजा ! सब समान ऋषभदेव थे। कल्पवृक्षों से मनचाही वस्तुएं मिल जाती थी। इसलिए न कहीं संघर्ष था, न कहीं अशान्ति धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ने लगी। कल्पवृक्षों से फल कम मिलने लगे। मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ गई। फलस्वरूप छीना झपटी बढ़ी तो संघर्ष की चिनगारियाँ उठने लगीं। * कल्पवृक्ष : देवीय शक्ति युक्त वृक्ष जो सभी इच्छाएँ पूर्ण करता था। Jain Education International クラク तब मनुष्यों ने आपसी संघर्ष को मिटाकर सबको अनुशासित रखने के लिए अपने में सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति, नाभि राय, को अपने कुल का मुखिया (कुलकर) नेता चुन लिया। For Private & Personal Use Only V हम नाभि राय को अपना कुलकर बनाते हैं। कुलकर नाभिराय की जय। www.jainelibrary.org:Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 38