Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवाकर चित्रकथा
तल
.boor neck
mm
भगवान
ऋषभदेव
अंक २ मूल्य 20.00
सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धि ज्ञान वृद्धि मनोरंजन
(
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव भारत के तीन प्रमुख धर्म हैं-जैन, बौद्ध एवं वैदिक (हिन्दूधर्म)। इन सभी की मान्यता है कि संसार में धर्म का आदि स्रोत करोड़ों अरबों वर्ष पुराना है। जैनधर्म के अनुसार वर्तमान काल प्रवाह में इस पृथ्वी पर भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम धर्म का प्रसार किया। न केवल धर्म का, किन्तु मनुष्य को कृषि, व्यवसाय, कला, शिल्प, राजनीति व राज-व्यवस्था की शिक्षा सर्वप्रथम ऋषभदेव ने दी थी। वे संसार के प्रथम राजा भी थे और प्रथम श्रमण (संन्यासी) एवं धर्म प्रवर्तक तीर्थंकर भी हुए। इसलिए उन्हें आदिनाथ अथवा प्रथम तीर्थंकर नाम से जाना जाता है।
ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत प्रथम चक्रवर्ती सम्राट् हुए। जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ।
भगवान ऋषभदेव लोकनायक भी थे और धर्मनायक भी। उन्होंने मानव-समाज की उन्नति के लिए मनुष्य को पुरुषार्थ की ओर प्रवृत्त किया तथा फिर आत्म-शान्ति के लिए निवृत्ति का मार्ग भी दिखाया। संसार में सुचारु समाज-व्यवस्था तथा राज-व्यवस्था स्थापित करके उन्होंने अन्त में संयम एवं त्याग मार्ग स्वीकार कर भोग और त्याग का संतुलित जीवन दर्शन सिखाया।
भगवान ऋषभदेव का जीवन-चरित्र जैन शास्त्रों के अतिरिक्त ऋग्वेद एवं श्रीमद् भागवत पुराण आदि में भी आता है। इतिहासकारों ने भगवान ऋषभदेव तथा भगवान शिवशंकर में अनेक विचित्र समानताएँ देखकर अनुमान लगाया है कि कहीं एक ही महापुरुष के ये दो स्वरूप तो नहीं हैं ? चूंकि दोनों ही महापुरुषों का जीवन-लक्ष्य तो लोक-कल्याण रहा है।
हमने भगवान ऋषभदेव का यह पवित्र चरित्र जैनधर्म के प्राचीन ग्रंथ आदि पुराण तथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के आधार पर प्रस्तुत किया है।
लेखक : शासन सूर्य मुनि श्री रामकृष्ण जी महाराज के शिष्यरत्न जैन रत्न श्री सुभद्र मुनि जी
संपादक : • श्रीचन्द सुराना 'सरस' • चन्दनमल 'चाँद' संयोजन एवं प्रकाशन-व्यवस्था : संजय सुराना
चित्रण : डॉ. त्रिलोक शर्मा
प्रकाशक:
दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002
मुनि मायाराम सम्बोधि प्रकाशन के. डी. ब्लॉक, पीतमपुरा, दिल्ली-110034
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
संजय सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282 002 दूरभाष : 351165, 51789 के लिए क्विक लेजर ऑफसैट, आगरा में मुद्रित।
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान इस अवसर्पिणी काल के आदि युग की यह कहानी है। जब मनुष्य की इच्छाएँ कम थीं। सत्य, सदाचारमय, सन्तोषी प्रवृत्ति के कारण सभी मनुष्य सुखी थे, न कोई राजा न कोई प्रजा ! सब समान
ऋषभदेव थे। कल्पवृक्षों से मनचाही वस्तुएं मिल जाती थी। इसलिए न कहीं संघर्ष था, न कहीं अशान्ति
धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ने लगी। कल्पवृक्षों से फल कम मिलने लगे। मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ गई। फलस्वरूप छीना झपटी बढ़ी तो संघर्ष की चिनगारियाँ उठने लगीं।
* कल्पवृक्ष : देवीय शक्ति युक्त वृक्ष जो सभी इच्छाएँ पूर्ण करता था।
クラク
तब मनुष्यों ने आपसी संघर्ष को मिटाकर सबको अनुशासित रखने के लिए अपने में सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति, नाभि राय, को अपने कुल का मुखिया (कुलकर) नेता चुन लिया।
V
हम नाभि राय को अपना कुलकर बनाते हैं।
कुलकर नाभिराय की जय।
:
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
छ
mor
1000001
20%
आप एक अलौकिक महान् पुत्र की माता बनोगी।
03
नाभिराय की रानी थी-मरूदेवी। आषाढ़ कृष्णा चौथ की शान्त रात्रि में महारानी मरूदेवी ने शयनकक्ष में सोते समय १४ विलक्षण और महत्वपूर्ण स्वप्न देखे। शुभ स्वप्न देखकर वे जाग उठीं और नाभिराय के पास आकर बोलीं।
महाराज ! मैंने कुछ विलक्षण स्वप्न देखें हैं उनका क्या फल होगा?
COM
2
Mas
www.jafnelibrary.org
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव चैत्र वदी अष्टमी की मध्य रात्रि के शुभ समय में माता मरूदेवा ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म होते ही समूची पृथ्वी पर क्षणभर के लिए प्रकाश फैल गया। देव और मनुष्य, पशु, पक्षी सभी आनन्द का अनुभव करने लगे। मनुष्यों तथा देवों ने मिलकर भाग्यशाली पुत्र का "जन्म-कल्याणक" (महोत्सव) मनाया।
नाभिराय ने अपने पुत्र का नामकरण किया।
हमारे बालक की छाति पर वृषभ का चिल है। इसलिए इसका नाम
ऋषभ रखा जाये।
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव कुमार ऋषभ लगभग एक वर्ष के हुये तब एक दिन देवराज इन्द्र हाथ में इक्षु (गन्ना) लेकर आये। इक्षु के प्रति बालक का आकर्षण देखकर देवराज बोले
इस वंश का नाम "इक्ष्वाकु" वंश प्रसिद्ध होगा।
E
युवा होने पर ऋषभ कुमार ने सुनन्दा और सुमंगला नामक कन्याओं के साथ विवाह करके समाज में सर्वप्रथम विवाह परम्परा चालू की।
20
इनसे भरत, बाहुबली आदि सौ पुत्र तथा ब्राह्मी एवं सुन्दरी नामक दो कन्याएँ उत्पन्न हुईं।
.S.
c
कुमार ऋषभ ने मानव समाज के चतुर्मुखी विकास के लिए लोगों को युद्ध विद्या, कृषि, गणित, लिपि, वाणिज्य तथा बर्तन निर्माण आदि कलाओं का प्रशिक्षण दिया।
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव कुलकर नाभि के समय तक मानव समाज मर्यादा पालक और शान्तिप्रिय था। धीर-धीरे मनुष्य धीठ स्वभाव का होने लगा, अपराध की मनोवृत्ति बढ़ी। अव्यवस्था फैलने लगी। तब जनता घबराकर कुमार ऋषभदेव के पास शिकायत करने आई।
"समाज को सुव्यवस्थित रखने के लिए आपको एक नि, एवं साहसी राजा की आवश्यकता है। आप लोग कुलकर
नाभिराय से राजा की माँग करें।" कुमार, हमारी
हमारा मार्गदर्शन रक्षा कीजिए।
कीजिए।
NOT
JuN
|तात ! हमें एक रामा दीजिए जो हम सबका संरक्षण करने में समर्थ हो।
ऐसा सुयोग्य संरक्षक तो ऋषभ ही हो सकता है।
हम कुमार ऋषभदेव को अपना राजा स्वीकार करते हैं।
राजा ऋषभदेव की
जय हो।
ज
.
AN
अनाभिराय ने ऋषभदेव को राजा घोषित कर दिया।
For Pilvale & Personal use only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋटना ऋषभदेव का राज्याभिषेक समारोह मनाया गया। जिसमें नाभिराय एवं माता मरुदेवा ने ऋषभदेव को आशीर्वाद दिया। सभी प्रमुख युगलिक समूह, भरत बाहुबली आदि पुत्र तथा ब्राह्मी, सुन्दरी, (पुत्रियां) उपस्थित थीं। युगलियों ने कमल पत्रों में पवित्र जल भरकर ऋषभदेव का चरण अभिषेक किया। ऋषभदेव जहाँ निवास करते थे, उस नगरी का नाम "विनीता, रखा गया।
Bolso00.
0OOTGIGI
JAJA प्रोणपालanditural
AND
MY
* उस युग के मनुष्य जो स्त्री-पुरुष के युगल (जोड़े, Pair) रूप में सदा साथ रहते थे। 6
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव ऋषभदेव में शासन व्यवस्था को उचित रूप हो चलाने के लिये। वस्तुओं का विनिमय करने वाले चतर लोगों को समाज में कार्यों का बटवारा कर दिया। बलवान और शक्ति वैश्य संज्ञा दी गई। वे व्यापार करने लगे। सम्पन्न व्यक्तियों को समान की रक्षा करने का कार्य सौंपा, वे क्षत्रिय कहलाये।
जिनमें सेवा सहयोग की भावना थी, उन्हें कहा गया। वे समान की सेवा करने लगे।
पुत्र की भाँति, प्रजा का पालन, संरक्षण |विकास करते हुए लोकनायक ऋषभदेव जीवन के उत्तरार्ध में पहुंचने लगे। एक दिन उन्होंने सोचा
अब मैं राज्य का समस्त दायित्व पुत्रों को सौंपकर चिन्ता मक्त हो जाऊँ...!
भरतसबसे बडपुत्रथइसलिए इन्हें अयोध्या बाहुबली को तक्षशिला तथा अन्य अठानवें पुत्रों को छोटे-छोटे प्रदेशों का का राज्य सौंपा गया।
शासन सौंपकर ऋषभदेव राज्य चिन्ता से मुक्त हो गये।
VYA
TvNy
NIMIT
7. For Private Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव एक बार महाराज ऋषभदेव राज सभा में बैठे-नीलांजना नाम की एक अप्सरा का नृत्य देख रहे थे, सभी दर्शक मंत्र-मुग्ध बैठे थे। अचानक नीलांजना मूच्छित होकर गिर पड़ी।
Mo
Gooder
महाराज, इसके तो प्राण पखेरू उड़ चुके हैं !!
मैं यह ऐश्वर्य त्यागकर साधना के महापथ पर आगे बढूँगा और मृत्यु पर विजय प्राप्त करूँगा।"
उन्होंने तुरन्त ऐश्वर्य त्यागकर मुनि जीवन तभी नव लोकांतिक देव ऋषभदेव के सामने प्रकट होकर बोले'ग्रहण करने का निश्चय किया।
ओह !! कितना नश्वर है यह मानव-जीवन ! कितना क्षणिक है यह देह ।
NPURANA
D
8
LOOOX CO
"हे महामानव ! आपका निश्चय अति सुन्दर है। आप, मानव को त्याग और संयम का मार्ग दिखलाइये।"
arat
JAV
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन संध्या के समय ऋषभदेव अयोध्या नगरी के बाहर उद्यान में पहुँचे। हजारों लोग उनके पीछे-पीछे थे। अशोक वृक्ष के नीचे खड़े होकर अपने हाथों से मस्तक के बालों का लुंचन किया और संसार की समस्त भोग-प्रवृत्तियों का त्यागकर इस युग के प्रथम श्रमण बने ।
देवराज इन्द्र ने अपने देव परिवार के साथ उपस्थित होकर प्रार्थना की
प्रभु ! यह शिखा आपके मस्तक पर बड़ी भव्य लग रही है। अतः इसे ऐसे ही रहने दीजिए।
इन्द्र की भावना का आदर कर ऋषभदेव ने चोटी रखकर बाकी बालों का लुंचन कर लिया। * घोटी (केश) के कारण ऋषभदेव केशरिया जी या केशी कहलाये / or Private 9 Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव भगवान् ऋषभदेव को साधु बनते देख कच्छ, महाकच्छ राजा आदि चार हजार व्यक्ति भी उनके साथ साधु बन । गये और प्रभु के पीछे-पीछे जंगल की ओर चल पडे।।
एक बार भगवान ऋषभदेव अपने शिष्यों के साथ भिक्षा के लिये नगर पधारे। उनके स्वागत के लिए लोग अनेक प्रकार के फल और सामान लेकर आये। परन्तु ऋषभदेव ने सोचा
मैं शुद्ध एवं सादा आहार करूगा यह
सब मैं ग्रहण नहीं कर सकता।
स्वामी, हम आपके के लिए। स्वर्ण आभूषण लाये हैं।
DESH
प्रभु,मैं आपके लिये -मीठे फल लाया हूँ।
शुद्ध आहार न मिलने पर ऋषभदेव भूखे प्यासे ही वहाँ से शिष्यों को जब ज्यादा भूख प्यास सताने लगी तो उन्होंने चल दिये और जंगल में जाकर तप करने लगे। भूख-प्यास जंगल में कन्द-मूल फल खाना प्रारम्भ कर दिया और से त्रस्त होकर उनके शिष्य भगवान के पास आये।
तापस बन गये। प्रभु।हम कैसा आहार ग्रहण करें? हमारी क्षुधा अग्नि को शान्त कीजिये।।
sachs
परन्तु ऋषभदेव मौन तप में लीना होने के कारण कुछ न बोले।
For Private
ersonal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव भगवान ऋषभदेव के साथ कच्छ और महाकच्छ नाम के दो राजा भी दीक्षित हुए थे। उस समय उनके पुत्र नमि
और विनमी दूर देश में गये हुए थे। अब नमि विनमी वापस लौट रहे थे तो उन्हें अपने पिताओं को जंगल में तापस के भेष में घमते देखा।
ओह / पिताजी किस हाल में मंगल-जंगल घूम रहे हैं, इनके
राज्य का क्या हुआ?
ET
पितामाह ने सभी को राज्य दिया.तो हमें "पिताश्री ऋषभदेव ने अपना राज्य सभी पुत्रों में बाँट कर श्रमण व्रत क्यों नहीं दिया? हम भी पितामाह ग्रहण कर लिया है।" हम भी उनके साथ श्रमण बन गये हैं।
से अपना अधिकार
लेगें।"
परन्तु ऋषभदेव तो मौन व्रत धारण किये हुए थे।
नमि-विनमी ढूँढते हुए ऋषभदेव के पास आ पहुँचे। और उनसे बोले
"प्रभु / आपने भरत आदि सभी को राज्य दिया। तो हमें भी राज्य दो। आप द्वारा प्रदत्त अल्प वैभव भी हमारे लिये 4 प्रसाद होगा।" MARAT
fidobal
For Private Sersonal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
भगवान को मौन देखकर दोनों भाई वहीं भगवान को प्रसन्न करने के लिये एकचित्त होकर उनकी भक्ति करने लगे।
एक दिन नागकुमारों के राजा धरणेन्द्र प्रभु के दर्शन को आये। दोनों कुमारों की अटूट भक्ति देखकर उन्होंने पूछा।
हम प्रभु के पास राज्य लेने आये हैं। हमारी भक्ति
हमारे मनोरथों को अवश्य पूर्ण करेगी।
आप लोग कौन हैं? और आपका क्या मनोरथ है।
Tod
धरणेन्द्र यह सनकर बहत प्रसन्न हए। नमि-विननि को अपने साथ वैताढय पर्वत पर ले गया जहा उन्होंने धरणेन्द्र की सहायता से नगर बसाये और सुख पूर्वक राज्य करने लगे।
For Private & Zonal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
भगवान ऋषभदेव को प्रव्रजित हुये एक वर्ष बीत चुका था। परन्तु उन्हें अभी तक विधिपूर्वक शुद्ध आहार प्राप्त नहीं हुआ। अन्न-पानी के अभाव से उनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था। गाँव-गाँव में विहार करते हुये भगवान एक दिन हस्तिनापुर में पधारे।
aa
Sujee
उस समय हस्तिनापुर में राजा सोमप्रभ का राज्य था। उनके पुत्र श्रेयांस कुमार ने उस रात श्रेयांस कुमार ने स्वप्न फल पर विचार किया। एक स्वप्न देखा कि वह मलिन हुए भेरूपर्वत को अमृत से थोकर उज्ज्वल बना रहा है।
अगले दिन सुबह राजकुमार महल के झरोखे में बैठा हुआ था।उस समय भगवान ऋषभदेव वहाँ से गुजर रहे थे। उनको | देखकर श्रेयांस कुमार को अपने पिछले जन्म की स्मृति हुई।
"ये तो मेरे प्रपितामह भगवान ऋषभदेव हैं। पिछले जन्म में मैंने भी इनके साथ श्रमण जीवन बिताया था। ओह ! प्रभु ने एक वर्ष से अन्न जल ग्रहण नहीं किया है।"
H
13
अवश्य ही मुझे विशिष्ट लाभ होने वाला है।
६०
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव श्रेयांस के हृदय में भक्ति का वेग उमड़ पड़ा, वह महल से नीचे उतरा और प्रभु की वंदना करके इक्षु रस ग्रहण करने की विनती की
PR प्रभु! यह शुद्ध निर्दोष इक्षु रस ग्रहण करके
मेरा कल्याण कीजिए।"
श्रेयांस कुमार की विनती स्वीकारते हुए ऋषभदेव ने इक्षु रस ग्रहण किया। यह पवित्र दिन था, वैशाख शुक्ला तृतीयाँ का। इस दिन भगवान ऋषभदेव ने इक्षु रस से वर्षी तप का पारणों किया। इसलिये जैन| परम्परा में यह दिन अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
MM
*इसी दिन की स्मृति में आज भी लाखों जैन वर्षी तप (एक वर्ष तक एक दिन भोजन एक दिन उपवास) करते । #उपवास के बाद आहार ग्रहण करना।
14 For Private & Personal use only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव इधर अयोध्या नगरी में ऋषभदेव की माता मलदेवा अपने पुत्र के समाचार नहीं मिलने से व्याकुल हो रही थी, उन्होंने अपने पौत्र भरत से कहा
MPMह भरत ! मेरे पुत्र ऋषभ को गृहत्याग किये
पूरे 9000 वर्ष हो गये, वह किस हाल में CG
है मुझे उसके समाचार लाकर दो।
१
VAVAV NINA सम्राट भरत ने ऋषभदेव के समाचार लाने चारों ओर दूत भेजे। कई दिन तक कोई समाचार नहीं मिला अचानक एक दिन तीन दूत राज सभा में आये।
महाराज समाचार मिला है कि- पुत्र एवं चक्र रत्न की प्राप्ति से भी महत्व(बधाइ हा महाराज महाराजा "परिमताल नगर के बाहर वट वृक्ष के पूर्ण है भगवान की वन्दना, इसलिए हम ने अभी-अभा पुत्र रत्न का नीचे भगवान ऋषभदेव को केवल ज्ञान सबसे पहले भगवान का केवल ज्ञान जन्म दिया है। की प्राप्ति हुई है।"
महोत्सव मनाना चाहिये। चक्रवर्ती सम्राट की जय हो,'
आयुधशाला में चक्र रत्न प्रकट हुआ।
DIYA
Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव भरत ने माता मरूदेवा को शुभ समाचार | माता मलदेवा के साथ भरत भगवान ऋषभदेव के दर्शनों के लिये निकल पड़े। सुनाया।
जब उनकी सवारी समवसरण के द्वार पर पहुंच गई तो भरत, महदेवा को ऋषभदेव की दिव्य विभूतियों का वर्णन सुनाने लगे।
पितामही! देखो न ! स्वामी
ऋषभदेव का आध्यात्मिक ऐश्वर्य कितना अद्भुत है।।
अरे! मैं तो व्यर्थ ही चिंता करती थी। मेरे ऋषभदेव की
तो महिमा ही न्यारी है।
16
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव समवसरण में आकर चक्रवर्ती भरत ने भगवान मनकी गहटी एकाग्रता और पवित्रता के कारण ऋषभदेव की वन्दना की।
मरुदेवा को पूर्वजन्मों की स्मृति हो गई। उसे सब कुछ समझ में आ गया।
ओह ! मैं तो अज्ञान के कारण व्यर्थ ही
मोह में फँसी हूँ। ऋषभदेव ने तो मोह को जीत लिया है। अब इनके लिए कौन माँ है? कौन पुत्र! वीतराग भाव में कितने प्रशान्त दीखते हैं ऋषभदेव !
SE::
Phog
WN
SARAL
ANUMANA
Ol/0/
तभी एक दिव्य ध्वनि सुनाई दी।
भगवती महदेवा सिद्ध
हो गई।
भरत ! भावों की परम विशुद्धता के कारण माता मरुदेवा ने अपने समस्त कर्मों का नाश
करके मोक्ष प्राप्त कर लिया है?
-
20
5
जरुदेवा भाव-विभोर होकर एकटक ऋषभदेव को देखने लगी।
प्रभु ! मैं यह क्या
सुन रहा हूँ?
माता मरुदेवा इस युग की प्रथम सिद्ध कहलाई।
17 Por Private & Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन भगवान ऋषभदेव ने भरत और उनके पुत्रों को प्रथम धर्म देशना दी और साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चार प्रकार के धर्म तीर्थ की स्थापना की।
चार धर्म-तीर्थों की स्थापना करने के कारण भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर कहलाये। धर्म की आदि (प्रारंभ) करने के कारण वे आदिनाथ नाम से प्रसिद्ध हुए।
"जीवन का लक्ष्य भोग नहीं त्याग है,
राग नहीं वैराग्य है। पहले अपना कल्याण कटो, फिर दूसरों की भलाई
के लिए प्रयत्नशील बनो। AA Haryana
yment
confrown
भगवान की देशना सुनकर सम्राट भरत के सैकड़ों पुत्र व पौत्र तथा पुत्रीयाँ ब्राह्मी आदि हजारों महिलाओं ने दीक्षा ग्रहण की। भरत के ज्येष्ठ पुत्र ऋषभसेन भगवान के प्रथम गणधर बने। उन्होंने श्रमणों के लिये पाँच महाव्रत और गहस्थों के लिये बारह व्रत का विधान किया।
प्रभो ! हमें संयम दीक्षा दीजिए।
भगवान के दर्शन करने के पश्चात भरत वापस अपनी राजधानी को लौट गये।। * धर्मदशना-भगवान का आध्यात्मिक व्याख्यान For Private ersonal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव भगवान ऋषभदेव का केवल महोत्सव मनाकर सम्राट भरत अपनी।।भरत ने विचार कियाराजधानी में आये और आयुधशाला में जाकर चक्ररत्न की पूजा की।
अब मुझे दिगविजय के लिये प्रस्थान करना
चाहिये।
OG GOOG
षट्खण्ड भारत पर अपनी विजय वैजयन्ती फहराने के लिये भरत ने विशाल सेना के साथ प्रस्थान किया।
I
ca
अनेक वर्ष पश्चात् जब भरत दिग्विजय करके अयोध्या वापस आये तो अयोध्या में विजय महोत्सव मनाया गया। छह खण्ड में अपना एक छत्र राज्य स्थापित कर भरत प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बने।
19
www.jalnelibrary.org
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव इस विजय महोत्सव में बाहुबली और उनके९८ छोटे भाई उपस्थित नहीं हये, भरत का संदेश सुनकर सब तो भरत ने उनके पास दूत भेजा।
भाईयों ने गुप्त मंत्रणा की। आप सब या तो चक्रवर्ती की आज्ञा स्वीकार करें, अन्यथा युद्ध के लिये तैयार हो जायें।"
हमें युद्ध करना होगा।
हिम पिता श्री के पास। जाकर मार्गदर्शन लेंगे।
सब भाई भगवान ऋषभदेव के प
ऋषभ देव बोले।
इसके समाधान के लिये मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता
"हे परम पिता प्रभु ! आप द्वारा प्रदत्त राज्य पर भरत ललचा.रहा है। बड़े भाई के साथ युद्ध करना भी उचित नहीं लगता। क्या क्षत्रिय धर्म के नाते हम
युद्ध करें? आप हमारा मार्गदर्शन करें।"
- TWIT
प्रभु ऋषभदेव कथा सुनाते हैं
|एक बार भयंकर गमी के कारण उसे तीव्र प्यास लगी। "एक था मुर्ख लकड़हारा। वह प्रतिदिन जंगल में पानी की खोज में वह इधर-उधर भटका, परन्तु कहीं भी लकड़ी काटकर अपना गुजारा करता था।
पानी नहीं मिला।"
For Private 2
ersonal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
प्यास के कारण परेशान होकर वह वृक्ष की छाया में लेट गया। नींद की झपकी लगी तो उसने एक स्वप्न देखा
11
Kawa
वह नदी पर गया और नदी का सारा पानी भी पी गया। फिर भी उसका गला सूखा ही रहा ।
She
पानी के लिये इधर-उधर भटकते हुए उसे भीगे तिनकों का ढेर दीखा। वह तिनकों को निचोड़-निचोड़ कर बूँद-बूँद पानी पीने की चेष्टा करने लगा।
Twee
वह कुये के पास गया और कुये का सारा पानी पी लिया फिर भी उसकी प्यास नहीं बुझी ।
समुद्र का सारा पानी भी उसने पी लिया, परन्तु उसकी प्यास शान्त नहीं हुई।
Se
For Private 2 Personal Use Only
3.
F
तभी हाथ के एक झटके से उसकी नींद टूट गई. स्वप्न भंग हो गया। फिर वही सूखा रेगिस्तान /
/
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव कहानी सुनाने के बाद भगवान ऋषभदेव अपने पुत्रों से बोले
पुत्रो । जो प्यास नदी और समुद्र के पानी से नहीं शान्त हो सकी, क्या यह गीले तिनकों को निचोड़कर पीने से बुझ सकती है, नहीं ! कभी नहीं ! पुत्रो ! तृष्णा ऐसी ही मन की विचित्र प्यास है। छह खण्ड के विशाल साम्राज्य भोग से भी जब मनुष्य की तृष्णा शान्त नहीं हुई तो छोटे-छोटे राज्यों से क्या शान्त होगी ? तृष्णा से तृष्णा बढ़ती है। सन्तोष से तृष्णा शान्त होती है। तुम अपनी आत्मा में छिपे असीम ऐश्वर्य को प्रकट करो। आत्मा की अनन्त विभूतियों को प्राप्त करो उनके समक्ष त्रिलोक का साम्राज्य भी तुम्हें तुच्छ लगेगा।"
din Sha
540
OPE
cara
M..
भगवान ऋषभदेव का मार्मिक उपदेश सुनकर अठानवे भाइयों को राज्य से विरक्ति हो गई। उन्होंने प्रभु के चरणों में नमस्कार कर अपने-अपने राज्य का त्याग कर दिया। और वहीं पर श्रमण बन गये।
22
क
ras
.
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र बाहुबली बल एवं शक्ति में भरत से भी बढ़ चढ़ कर थे। उन्हें भी भरत की अधीनता स्वीकारने का सन्देश मिला। अठानवें भाइयों द्वारा राज्य त्यागकर दीक्षा लेने की घटना उनके मन को कचोट रही थी, जिस पर बड़े भाई भरत का यह सन्देश जले पर नमक जैसा लगा। बाहुबलि तिलमिला उठे।
पिताजी द्वारा प्रदत्त राज्य पर भरत का कोई अधिकार नहीं है, फिर भी वह अनधिकार चेष्टा करेगा तो इसका निर्णय
युद्ध भूमि में बाहुबलि की बलिष्ट भुजाएँ करेंगी।
बाहुबलि को अधीन किये बिना भरत का षट् खण्ड चक्रवर्तीत्व अपूर्ण रह जाता था, इसलिए उसने बाहुबलि के साथ युद्ध की घोषणा की।
दूत ने वापस आकर सम्राट भरत को बाहबलि। का संदेश सुनाया।
हमें किसी की अधीनता
स्वीकार नहीं है।
युद्ध की तैयारी
की जाए।
23
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव दोनों भाइयों की सेनायें आमने-सामने आकर डट गई, इस महायुद्ध को देखने के लिये आकाश में हजारों देवता, दानव, राक्षसों का जमघट लग गया। भयंकर नरसंहार की कल्पना से देवराज इन्द्र का हृदय कॉप उठा।
EPAL
अहिंसा अवतार भगवान ऋषभदेव के पुत्र होकर आप हिंसा का ताण्डव नृत्य करेंगे? कितनी लज्जा की बात है यह? नरसंहार न हो इसलिये सेनायें मूकदर्शक बनकर देखती रहेंगी। आप दोनों भाई परस्पर शक्ति
परीक्षण करेंगे, मो जीतेगा वही विजेता होगा।
देवराज इन्द्र व्यर्थ का रक्तपात रोकने के लिए दोनों सेनाओं के बीच में आकर खड़े हो गये।
24
.
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव सर्वप्रथम दृष्टि-युद्ध प्रारम्भ हुआ। भरत-बाहुबलि फिर वाग् युद्ध हुआ। दोनों ने भयंकर सिंहनाद किया। दोनों एक-दूसरे को आँखें फाड़कर बिना पलक अश्व, हाथी आदि जानवर घबराकर युद्ध भूमि से झपकाये अनिमेष घूरते रहे। संध्या होते-होते भरत की भागने लगे। वाग् युद्ध में भी भरत पराजित हुए। पलकें झपक गईं।
G
Ecoo
6000
दृष्टि युद्ध में भरत हार गये।
तीसरे दिन बाह युद्ध (कुश्ती) का निर्णय हुआ। भरत ने बाहुबलि को अपनी भुजाओं में जकड़ लिया।
बाहुबलि ने भरत के सिर पर दण्ड मारा जिससे भरत गले तक जमीन में धंस गये।
000ER
IPANAANI
भरत बाहुबलि की छाती पर बैठ गये।।
बाहुबलि ने भरत को आकाश में उछाल दिया। भरत वापस धरती पर गिरने लगे तो बाहुबलि ने उन्हें अपनी भुजाओं में लपक लिया। और इस तरह बाहु युद्ध में भी भरत की हार हुई।
25
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
बार-बार की हार से खिन्न होकर भरत अपनी मर्यादा भूल 'बैठे और गुस्से में बाहुबलि का सिर काटने के लिये चक्र फैंका।
10
ALPOOL
क्रोधित बाहुबलि भरत के लिए पर प्रहार करने के लिए अपनी मुट्ठी उठाकर भरत की तरफ दौड़े, भरत भयभीत हो गये।
भगवान ऋषभदेव
9.0
कैसे करता,
परन्तु वह तो दिव्य चक्र था, बन्धुघात इसलिये बाहुबलि की प्रदक्षिणा करके वह वापस आ गया।
a
यह दृश्य देखकर देवराज इन्द्र तथा सैकड़ों देव, मंत्री पुरोहित आदि बाहुबलि के सामने आकर प्रार्थना करने लगे। AD
Mirr
हे युग के महाबलि /
क्रोधको शान्त करो। बन्धु हत्या से इक्ष्वाकु वंश की कीर्ति पर अपयश
का दाग लग जायेगा। आप क्षमावीर हैं, क्षमा कीजिए।
26
-
RAMIN
Rec
X
INTINTUN
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव देवताओं और ज्येष्ट नागरिकों की प्रार्थना सुनकर बाहुबलि का उठा हुआ हाथ रुक गया। वे सोचने लगे
ये सब ठीक कह रहे हैं! भूमि के एक छोटे से टुकड़े के लिए मैं पिता समान पूज्य भाई की हत्या करना चाहता हूँ ! धिक्कार है मुझे !
मेरे अहंकार ने मुझे अंधा बना दिया। मैं भाई की हत्या नहीं कर सकता।"मेरा शत्रु भरत नहीं, अहंकार है।"
मुझे न राज्य चाहिए,न सम्मान ! मैं पूज्य पिताश्री के मार्ग का अनुसरण करूंगा।
DOO
ROADISIXCorama
Rv.
na
यह सोचते हुए बाहुबलि ने उसी मुट्ठी से। राज-मुकुट उतारा, वस्त्राभूषण उतारे और सिर के बालों को लूंचन कर श्रमण बन गये।
बाहुबलि की जय।"
"विश्व-विजेता बनकर आत्म-विजेता बनने वाले आदीश्वर
पुत्र बाहुबलि की जय।"
27
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
युद्ध में षट्खण्ड चक्रवर्ती को जीतने वाले बाहुबलि सूक्ष्म अहंकार से हार
मन
के
गये।
वे सोचने लगे
मैं भगवान ऋषभदेव के पास जाऊँगा तो वहाँ मुझसे पूर्व दीक्षित छोटे भाई भी होंगे? उन्हें वन्दना करनी
होगी
?
अपने से छोटों के सामने कैसे सिर नवाऊँगा?
भगवान ऋषभदेव
एक दिन साध्वी ब्राह्मी-सुन्दरी भगवान ऋषभदेव के पास आईं। उन्होंने ऋषभदेव से पूछा
प्रभो ! महामुनि बाहुबलि कहाँ तप कर रहे हैं? उन्हें केवल ज्ञान हुआ या नहीं?
कभी-कभी तिनके की ओट
हमें सूर्य छुपा रहता है? अद्भुत घोर तपस्वी मुनि
बाहुबलि के मन में अहंकार का एक तिनका आ गया है, यही अहं केवल ज्ञान के दिव्य प्रकाश को रोक रहा है। तुम जाओ उसे जगाओ !
aree K-by!
अभिमान का यह छोटा-सा प्रश्न बाहुबलि के मन में कांटा बनकर चुभ गया। वे एक वर्ष तक अचल हिमालय की तरह ध्यान लीन खड़े रहे। शरीर पर लताएँ चढ़ गईं। पाँवों पर मिट्टी की परतें जम गई। नाग आदि जीव-जन्तु
१.२०१०
चन्दन तर समझकर उनकी देह से लिपट गये।
For Private 28ersonal Use Only
3
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव जंगल के बीच बाहुबलि ध्यानयोग में पर्वत की भाँति स्थिर खड़े थे। पत्तियों, लताओं और नागों से लिपटा उनका देह चन्दन तल सा लग रहा था। इसलिए ब्रानी-सुन्दरी बाहबलि को पहचान नहीं पाती है। तब वे अपनी दिव्य संगीत वाणी में बाहबलि को पुकारती हैं
भाई ! जागो ! समझो ! हाथी से नीचे उतरो। हाथी पर चढ़े हुए को केवल ज्ञान नहीं हो सकता।
मान रूपी हाथी ज्ञान रूपी सूर्य को ढके हुए है ! समझो मेरे भाई !"
यह संगीत सा मधुर स्वर तो मेरी बहनों का लगता है? कैसे कहती हैं वे, मैं हाथी पर चढ़ा हूँ! कहाँ है हाथी? सब कुछ त्याग तो चुका हूँ""14
बाहुबलि अपने आपको टटोलने लगे तो विवेक के दर्पण में मान-रूपी हाथी सूंड उछालता हुआ दिखाई दिया।
DOO "ओह! मैं तो अभिमान रूपी हाथी पर बैठा हूँ। साम्राज्य छोड़ा, शरीर की ममता छोड़ दी ! पर अहंकार नहीं छोड़ सका, छोटे-बड़ों का प्रश्न क्यों | अटका है मेरे मन में? इसी से तो अटक गया केवल ज्ञान!
Jain Education
For Private 29ersonal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव बाहुबलि के कदम उठाते ही अभिमान रूपी हाथी लुप्त हो गया। केवल ज्ञान प्राप्त होने पर बाहुबलि के अन्दर का कण-कणं जगमगा उठा। आकाश से उतरते देवताओं के झुण्ड ने पुष्प वर्षा की, दिव्य ध्वनियाँ गूंजी, केवली बाहुबलि की जय
100
मुनि तो सदा ही महान् होता है। छोटे-बड़े सब मुनियों को मेरा नमस्कार ! मैं जाता हूँ प्रभु
आदीश्वर के चरणों में!
PANNN
ANMa
एक बार प्रभु आदीश्वर के दर्शन करने चक्रवर्ती भरत आये। वहाँ अपने अठानवें बंधुओं और बाहुबलि को मुनि रूप में उपस्थित देखकर भरत के मन में अपने कृत्य के प्रति पश्चात्ताप हुआ।
AKCEO
भरत | तुम त्यागी तपस्वियों की सेवा करो। सदाचारियों का पोषण करो, इसी से तुम्हारे
मन को शान्ति प्राप्त होगी।
प्रभो!
अपने भाइयों के साथ मैंने घोर अन्याय किया है। मैंने इक्ष्वाकु वंश की निर्मल कीर्ति पर
कलंक लगा दिया है। प्रभो ! मेरा यह जघन्य
आचरण कैसे क्षम्य होगा? पश्चात्ताप से जलते मेरे हृदय को कैसे
शान्ति मिलेगी?
SAMITRAM
LuunsitiatitutioLI
For Private Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव
एक बार भगवान ऋषभदेव अयोध्या में पधारे। भरत धर्म सभा में एक स्वर्णकार भी बैठा भगवान की धर्म आदि हजारों लोग उनका उपदेश सुनने गये। देशना सुन रहा था। यह सुनकर वह भगवान ऋषभदेव से पूछता है।
बन्धुओ, धन आदि की ममता त्यागकर मन को हल्का बनाओ। जिस प्रकार हल्की वस्तुएँ ऊपर उठ जाती है भारी नीचे बैठ जाती हैं उसी प्रकार जिसके जीवन में धन आदि परिग्रह का अधिक भार होगा वह नीची गति में जायेगा और अल्प परिग्रही ऊँची गति में।
1000
नहीं ऐसा नहीं है: भरत तो जल में
कमल की तरह अनासक्त भाव
से अपना कर्त्तव्य निभा रहा है; वह महा परिग्रही नहीं है।
ARCH
.
kari.
24NE
* परिग्रह- धन संपत्ति का लोभ
113223
47
15000
चिक्रवर्ती सम्राट और अल्प परिग्रही? भगवान के घर में भी
पक्षपात..?
33 33
WINN
1709
31
प्रभु ! सम्राट भरत महान् परिग्रही हैं और मेरे पास बहुत कम परिग्रह है। तो क्या मैं ऊँची गति में जाऊँगा और भरत नीची गति में ?
C
भरत ने जब स्वर्णकार को दुविधा की स्थिति में देखा तो
WWW
NE
Apere
Waneria
इसने भगवान के कथन को ठीक से समझा नहीं है। इसे समझाना चाहिये।
Int
५
A
.
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवान ऋषभदेव अगले दिन भरत ने स्वर्णकार को अपनी राज सभा में स्वर्णकार कटोरे को लेकर पूरी अयोध्या नगटी का | बुलाया। और तेल से लबालब भरा हुआ एक कटोरा चक्कर लगाकर वापस राजदरबार में आता है। भरत देकर कहा
उससे पूछते हैं।
6 इस कटोरे को हथेली पर रखकर पूरे महाराज! मेरा तो बताओ तुमने
अयोध्या नगरी का चक्कर लगाओ और पूरा ध्यान इस अयोध्या के बाजारों वापस आकर मुझे बताओ तुमने नगर में क्या तेल के कटोरे पर में क्या देखा? देखा? खबरदार जो कटोरे में से एक बूंद ।। | लगा हुआ था तेल भी गिरा तो तुम्हें मृत्यु दण्ड मिलेगा! | इसलिये मैं कुछ
भी नहीं देख पाया।
2007
भरत ने यह सुना तो वे हंसकर बोले
इस तरह समाज में परिग्रह और त्याग का मर्म समझाते हुए ऋषभदेव को हमारों वर्ष गुजर गये। एक दिन उन्हें महसूस हुआ कि अब उनका अन्तिम समय निकट आ गया है। यह जानकर वे अष्टापद पर्वत पर जाकर समाधि-ध्यान में स्थिर हो गये।
तुम कुछ समझे? इस ऐश्वर्य से भरी दुनिया में, मैं भी इसी प्रकार जी रहा हूँ। मेरा पूरा ध्यान अपनी आत्मा पर केन्द्रित है संसार के बाजार से मुझे कुछ भी लेना-देना नहीं है। सोचो फिर
भी क्या मैं महा परिग्रही हूँ?
महाराज! मुझे क्षमा करें मैं भगवान के कथन की गहराई को नहीं समझ सका।
IGODDA
For Private Personal use only!
0562-26624
w
ain
library
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
वार्षिक सदस्यता फार्म मान्यवर, ___ मैं आपके द्वारा प्रकाशित चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें।
(कृपया बॉक्स पर का निशान लगायें) - तीन वर्ष के लिये अंक 34 से 66 तक (33 पुस्तकें) 540/- पाँच वर्ष के लिये अंक 12 से 66 तक (55
900/.. दस वर्ष के लिये अंक 1 से 108 तक (108 पुस्तकें) 1,800/
मैं शुल्क की राशि एम. ओ./ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें।
नाम (Name) (in capital letters) पता (Address).
पिन (Pin).
M.O./D.D. No.
-Bank
-Amount
हस्ताक्षर (Sign.). नोट-. यदि आपको अंक 1 से चित्रकथायें मंगानी हो
तो कृपया इस लाईन के सामने हस्ताक्षर करें • कृपया चैक के साथ 25/- रुपये अधिक जोड़कर भेजें।
पिन कोड अवश्य लिखें। चैक/ड्राफ्ट/एम.ओ. निम्न पते पर भेजेंSHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH.: 0562-351165
दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ 1.क्षमादान
16. राजकुमार श्रेणिक
30. तुष्णा का जाल 2. भगवान ऋषभदेव
17. भगवान मल्लीनाथ
31. पाँच रत्न 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार
18. महासती अंजना सुन्दरी
32. अमृत पुरुष गौतम 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ
19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 33. आर्य सूधर्मा 5. भगवान महावीर की बोध कथायें 20. भगवान नेमिनाथ
34. पुणिया श्रावक 6. बुद्धि निधान अभय कुमार
21. भाग्य का खेल
35. छोटी-सी बात 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ
22. करकण्डू जाग गया (प्रत्येक बुद्ध) 36. भरत चक्रवर्ती 8. किस्मत का धनी धन्ना
23. जगत् गुरु हीरविजय सूरी
37. सद्दाल पुत्र 9-10 करुणा निधान भ. महावीर (भाग-1, 2) 24. वचन का तीर
38. रूप का गर्व 11. राजकुमारी चन्दनबाला
25. अजात शत्रु कूणिक
39. उदयन और वासवदत्ता 12. सती मदनरेखा
26. पिंजरे का पंछी
40. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य 13. सिद्ध चक्र का चमत्कार
27. धरती पर स्वर्ग
41. कुमारपाल और हेमचन्द्राचार्य 14. मेघकुमार की आत्मकथा
28. नन्द मणिकार (अन्त मति सो गति) 42. दादा गुरुदेव जिनकुशल सूरी 15. युवायोगी जम्बूकुमार
29. कर भला हो भला
43. श्रीमद् राजचन्द्र Jain Education in
Vale & Personal use only
[w.jainelibrary.org
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक बात आपसे भी.......
.
भ
.
सम्माननीय बन्धु,
सादर जय जिनेन्द्र !
जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियों का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने गत चार वर्षों से प्रारम्भ किया है।
अब यह चित्रकथा अपने पाँचवे वर्ष में पदापर्ण करने जा रही है।
इन चित्रकथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा।
हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के साथ छपे सदस्यता पत्र पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें।
आप इसके तीन वर्षीय (33 पुस्तकें), पाँच वर्षीय (55 पुस्तकें) व दस वर्षीय (108 पुस्तकें) सदस्य बन सकते हैं।
आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट/एम. ओ. प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्ट्री से अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक (आपकी सदस्यता के अनुसार) प्रत्येक माह डाक द्वारा आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद !
आपका नोट-वार्षिक सदस्यता फार्म पीछे है।
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
सम्पादक SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH. : 0562-351165
हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य सचित्र भक्तामर स्तोत्र 325.00 सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग-1,2)1,000.00 सचित्र दशवैकालिक सूत्र 500.00 सचित्र णमोकार महामंत्र 125.00 सचित्र कल्पसूत्र
500.00 भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) 18.00 सचित्र तीर्थंकर चरित्र 200.00 सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र 500.00 सचित्र मंगल माला
20.00 सचित्र आचारांग सूत्र 500.00 सचित्र अन्तकृदशा सूत्र 500.00 सचित्र भावना आनुपूर्वी 21.00
चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र 25.00 श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र
15.00 भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र
25.00
श्री सर्वतोभद्र तिजय पहुत्त यंत्र चित्र 10.00 श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र
15.00 श्री घंटाकरण यंत्र चित्र
25.00 श्री सिद्धिचक्र यत्र चित्र
20.00 श्री ऋषिमण्डल यंत्र चित्र
20.00
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन साहित्य के इतिहास में एक नया शुभारम्भ सचित्र आगम हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ
जैन संस्कृति का मूल आधार है आगम। आगमों के कठिन विषय को सुरम्य रंगीन चित्रों के द्वारा मनोरंजक और सुबोध शैली में मूल प्राकृत पाठ, सरल हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक प्रयत्न।
___ अब तकप्रकाशित आगम 6 सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र मूल्य 500.00 सचित्र देशवैकालिक सूत्र
मूल्य 500.00 (भगवान महावीर की अन्तिम वाणी अत्यन्त शिक्षाप्रद, जैन श्रमण की सरल आचार संहिता : जीवन में पद-पद पर ज्ञानवर्द्धक जीवन सन्देश।)
काम आने वाले विवेकयुक्त संयत व्यवहार, भोजन, भाषा,
विनय आदि की मार्गदर्शक सूचनाएँ। आचार विधि को रंगीन सचित्र अन्तकृदशासूत्र मूल्य 500.00
चित्रों के माध्यम से आकर्षक और सुबोध बनाया गया है। अष्टम अंग। 90 मोक्षगामी आत्माओं का तप-साधना पूर्ण रोचक जीवन वृत्तान्त।
मूल्य 500.00
ज्ञान के विविध स्वरूपों का अनेक युक्ति एवं दृष्टान्तों के सचित्र ज्ञाता धर्मकथांगसूत्र (भाग 1,2)
साथ रोचक वर्णन। चित्रों द्वारा ज्ञान के सूक्ष्म स्वरूपों को ___ प्रत्येक का मूल्य 500.00 जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। भगवान महावीर द्वारा कथित बोधप्रद दृष्टान्त एवं रूपकों आदि
| सचित्र आचारांग सूत्र (भाग 1, 2) को सुरम्य चित्रों द्वारा सरल सुबोध शैली में प्रस्तुत किया गया है।
प्रत्येक का मूल्य 500.00 सचित्र कल्पसूत्र
मल्य 500.00 जैन धर्म के आचार विचार का आधारभूत शास्त्र। जिसमें पर्युषण पर्व में पठनीय 24 तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र व आहसा, सयम, तप, अप्रमाद आदि विषयो पर बहुत ही स्थविरावली आदि का वर्णन। रंगीन चित्रमय।
सुन्दर विवेचन है। भगवान महावीर की साधना का भी रोचक इतिहास इसमें है।
सचिव
आचारांगसूत्र ACHARANGA SUTRA
BAUSTRATED
प्रकाशित १ सचित्र आगमों के
सैट का मूल्य 4,500/प्राप्ति स्थान :
श्री दिवाकरप्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन : (0562) 351165
सचित्र
राध्ययन संपादक श्री अमर गुनि
सचित्र
दशवैकालिक सूत्र
श्री अमर मुनि
सचित्र
ज्ञाताधमकथाङसत्रा
अमरन
Jnātā Dharma Kathānga Sūtra
ILLUSTRATED DASAVAIKALIKA SUTRA
SHRI AMAR MUNE
आजमरमुनि
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ जैनधर्म के प्रसिद्ध विषयों पर आधारित रंगीन सचित्र कथाएं: दिवाकर चित्रकथा जैनधर्म, संस्कृति, इतिहास और आचार-विचार से सीधा सम्पर्क बनाने का एक सरलतम, सहज माध्यम / मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक, संस्कार-शोधक, रोचक सचित्र कहानियाँ। 1. क्षमादान 2. भगवान ऋषभदेव 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 5. भगवान महावीर की बोध कथायें 6. बुद्धिनिधान अभयकुमार 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ 8. किस्मत का धनी धन्ना 19-10. करुणानिधान भ. महावीर 11. राजकुमारी चन्दनबाला प्रसिद्ध कड़ियाँ 12. सती मदनरेखा 13. सिद्धचक्र का चमत्कार 14. मेघकुमार की आत्मकथा 15. युवायोगी जम्बूकुमार 16. राजकुमार श्रेणिक 17. भगवान मल्लीनाथ 18. महासती अंजनासुन्दरी 19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 20. भगवान नेमिनाथ 21. भाग्य का खेल 22. करकण्डू जाग गया 23. जगत् गुरु हीरविजय सूरि 24. वचन का तीर 25. अजातशत्रु कूणिक 26. पिंजरे का पंछी 27. धरती पर स्वर्ग -28. नन्द मणिकार 29. कर भला हो भला 30. तृष्णा का फल 31. पाँच रत्न 1155 पुस्तकों के सैट का मूल्य 900.00 रुपया। 33 पुस्तकों के सैट का मूल्य 540.00 रुपया। लानाः वचन का तार कन्दमणिकार भगवान शिवश्रेणिक संस्कार किरक्षिाधिोरमन सरकारविवारनिति युवायोगी जम्बूकुमार चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान नषभदेव भगवान महावीर सaeरक्षित चित्रकथाएँ मँगाने के लिए अंदर दिये गये सदस्यता फॉर्म को भरकर भेजें।