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भगवान ऋषभदेव देवताओं और ज्येष्ट नागरिकों की प्रार्थना सुनकर बाहुबलि का उठा हुआ हाथ रुक गया। वे सोचने लगे
ये सब ठीक कह रहे हैं! भूमि के एक छोटे से टुकड़े के लिए मैं पिता समान पूज्य भाई की हत्या करना चाहता हूँ ! धिक्कार है मुझे !
मेरे अहंकार ने मुझे अंधा बना दिया। मैं भाई की हत्या नहीं कर सकता।"मेरा शत्रु भरत नहीं, अहंकार है।"
मुझे न राज्य चाहिए,न सम्मान ! मैं पूज्य पिताश्री के मार्ग का अनुसरण करूंगा।
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यह सोचते हुए बाहुबलि ने उसी मुट्ठी से। राज-मुकुट उतारा, वस्त्राभूषण उतारे और सिर के बालों को लूंचन कर श्रमण बन गये।
बाहुबलि की जय।"
"विश्व-विजेता बनकर आत्म-विजेता बनने वाले आदीश्वर
पुत्र बाहुबलि की जय।"
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