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________________ भगवान ऋषभदेव समवसरण में आकर चक्रवर्ती भरत ने भगवान मनकी गहटी एकाग्रता और पवित्रता के कारण ऋषभदेव की वन्दना की। मरुदेवा को पूर्वजन्मों की स्मृति हो गई। उसे सब कुछ समझ में आ गया। ओह ! मैं तो अज्ञान के कारण व्यर्थ ही मोह में फँसी हूँ। ऋषभदेव ने तो मोह को जीत लिया है। अब इनके लिए कौन माँ है? कौन पुत्र! वीतराग भाव में कितने प्रशान्त दीखते हैं ऋषभदेव ! SE:: Phog WN SARAL ANUMANA Ol/0/ तभी एक दिव्य ध्वनि सुनाई दी। भगवती महदेवा सिद्ध हो गई। भरत ! भावों की परम विशुद्धता के कारण माता मरुदेवा ने अपने समस्त कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त कर लिया है? - 20 5 जरुदेवा भाव-विभोर होकर एकटक ऋषभदेव को देखने लगी। प्रभु ! मैं यह क्या सुन रहा हूँ? माता मरुदेवा इस युग की प्रथम सिद्ध कहलाई। Jain Education International 17 Por Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002802
Book TitleBhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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