SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान ऋषभदेव फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन भगवान ऋषभदेव ने भरत और उनके पुत्रों को प्रथम धर्म देशना दी और साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चार प्रकार के धर्म तीर्थ की स्थापना की। चार धर्म-तीर्थों की स्थापना करने के कारण भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर कहलाये। धर्म की आदि (प्रारंभ) करने के कारण वे आदिनाथ नाम से प्रसिद्ध हुए। "जीवन का लक्ष्य भोग नहीं त्याग है, राग नहीं वैराग्य है। पहले अपना कल्याण कटो, फिर दूसरों की भलाई के लिए प्रयत्नशील बनो। AA Haryana yment confrown भगवान की देशना सुनकर सम्राट भरत के सैकड़ों पुत्र व पौत्र तथा पुत्रीयाँ ब्राह्मी आदि हजारों महिलाओं ने दीक्षा ग्रहण की। भरत के ज्येष्ठ पुत्र ऋषभसेन भगवान के प्रथम गणधर बने। उन्होंने श्रमणों के लिये पाँच महाव्रत और गहस्थों के लिये बारह व्रत का विधान किया। प्रभो ! हमें संयम दीक्षा दीजिए। भगवान के दर्शन करने के पश्चात भरत वापस अपनी राजधानी को लौट गये।। * धर्मदशना-भगवान का आध्यात्मिक व्याख्यान Jain Education International For Private ersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002802
Book TitleBhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy