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भगवान ऋषभदेव चैत्र वदी अष्टमी की मध्य रात्रि के शुभ समय में माता मरूदेवा ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म होते ही समूची पृथ्वी पर क्षणभर के लिए प्रकाश फैल गया। देव और मनुष्य, पशु, पक्षी सभी आनन्द का अनुभव करने लगे। मनुष्यों तथा देवों ने मिलकर भाग्यशाली पुत्र का "जन्म-कल्याणक" (महोत्सव) मनाया।
नाभिराय ने अपने पुत्र का नामकरण किया।
हमारे बालक की छाति पर वृषभ का चिल है। इसलिए इसका नाम
ऋषभ रखा जाये।
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