________________
भगवान ऋषभदेव कहानी सुनाने के बाद भगवान ऋषभदेव अपने पुत्रों से बोले
पुत्रो । जो प्यास नदी और समुद्र के पानी से नहीं शान्त हो सकी, क्या यह गीले तिनकों को निचोड़कर पीने से बुझ सकती है, नहीं ! कभी नहीं ! पुत्रो ! तृष्णा ऐसी ही मन की विचित्र प्यास है। छह खण्ड के विशाल साम्राज्य भोग से भी जब मनुष्य की तृष्णा शान्त नहीं हुई तो छोटे-छोटे राज्यों से क्या शान्त होगी ? तृष्णा से तृष्णा बढ़ती है। सन्तोष से तृष्णा शान्त होती है। तुम अपनी आत्मा में छिपे असीम ऐश्वर्य को प्रकट करो। आत्मा की अनन्त विभूतियों को प्राप्त करो उनके समक्ष त्रिलोक का साम्राज्य भी तुम्हें तुच्छ लगेगा।"
din Sha
540
OPE
cara
Jain Education International
M..
भगवान ऋषभदेव का मार्मिक उपदेश सुनकर अठानवे भाइयों को राज्य से विरक्ति हो गई। उन्होंने प्रभु के चरणों में नमस्कार कर अपने-अपने राज्य का त्याग कर दिया। और वहीं पर श्रमण बन गये।
22
For Private & Personal Use Only
क
ras
www.jainelibrary.org.