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भगवान ऋषभदेव
प्यास के कारण परेशान होकर वह वृक्ष की छाया में लेट गया। नींद की झपकी लगी तो उसने एक स्वप्न देखा
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वह नदी पर गया और नदी का सारा पानी भी पी गया। फिर भी उसका गला सूखा ही रहा ।
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पानी के लिये इधर-उधर भटकते हुए उसे भीगे तिनकों का ढेर दीखा। वह तिनकों को निचोड़-निचोड़ कर बूँद-बूँद पानी पीने की चेष्टा करने लगा।
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वह कुये के पास गया और कुये का सारा पानी पी लिया फिर भी उसकी प्यास नहीं बुझी ।
समुद्र का सारा पानी भी उसने पी लिया, परन्तु उसकी प्यास शान्त नहीं हुई।
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तभी हाथ के एक झटके से उसकी नींद टूट गई. स्वप्न भंग हो गया। फिर वही सूखा रेगिस्तान /
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