Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 11
________________ भगवान ऋषभदेव चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन संध्या के समय ऋषभदेव अयोध्या नगरी के बाहर उद्यान में पहुँचे। हजारों लोग उनके पीछे-पीछे थे। अशोक वृक्ष के नीचे खड़े होकर अपने हाथों से मस्तक के बालों का लुंचन किया और संसार की समस्त भोग-प्रवृत्तियों का त्यागकर इस युग के प्रथम श्रमण बने । देवराज इन्द्र ने अपने देव परिवार के साथ उपस्थित होकर प्रार्थना की प्रभु ! यह शिखा आपके मस्तक पर बड़ी भव्य लग रही है। अतः इसे ऐसे ही रहने दीजिए। इन्द्र की भावना का आदर कर ऋषभदेव ने चोटी रखकर बाकी बालों का लुंचन कर लिया। * घोटी (केश) के कारण ऋषभदेव केशरिया जी या केशी कहलाये / or Private 9 Personal Use Only www.jainelibrary.org

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